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अर्थ:-- पञ्चज्ञानेन्द्रिय कौन हैं ?
 
समाधान–--- श्रोत्रं, त्वक्, चक्षुः, रसना, घ्राणमिति
पञ्च ज्ञानेन्द्रियाणि ।

श्रोत्रस्य दिग्देवता, त्वचो वायुः, चक्षुषः सूर्यः, रस-
नाया वरुणः, घ्राणस्याश्विनाविति ज्ञानेन्द्रियदेवताः ।

श्रोत्रस्य विषयः शब्दग्रहणम्, त्वचो विषयः
स्पर्शग्रहणम्, चक्षुषो विषयः रूपग्रहणम्, रसनाया
विषयो रसग्रहणम्. घ्राणस्य विषयो गन्धग्रहणमिति ।
 
अर्थ:-- श्रोत्र (कान), त्वचा ( चमड़ा), नेत्र ( आँख ),
रसना ( जिह्वा ) और घ्राण (नाक) ये पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं।
प्रत्येक देवता का इस शरीर में निवास है-- जैसे कानों के
देवता दिशाएँ हैं, तथा त्वचा के देव वायु हैं, नेत्रों के देव
सूर्य हैं, जिह्वा के देव वरुण हैं, नाक के देव अश्विनीकुमार हैं ।
अब इनके कर्तव्य वर्णन करते हैं-- कानों का कर्तव्य है शब्द
का बोध करना, चमड़े का कर्तव्य है कि स्पर्श करना, नेत्र का
कार्य रूप को ग्रहण करना, जिह्वा का कार्य खट्टा मिट्ठादि
रसों को ग्रहण करना, नाक का कर्तव्य है कि गन्ध को ग्रहण
करना, इस प्रकार ज्ञानेन्द्रियों के देवता तथा कर्तव्य वर्णन किया ।
 
अब इन इन्द्रिय-जगत् का कर्तव्य क्या है ? तथा परस्पर में
सम्बन्ध रखकर किस प्रकार अपना साम्राज्य बना रक्खा है उसी विषय
पर दृष्टान्त कहते हैं--