This page has been fully proofread twice.

उपरोक्त प्रमाण में तो आत्मा का शरीरादि अवयवों से अलग ही
निवास कहा । तब पहले शरीर के भेदों को तथा कोशादिकों को
जानने की इच्छासे पुनः शंकाएँ की जाती हैं-
 
शङ्का--स्थूलशरीरं किम् ?
 
अर्थ:--स्थूल शरीर किसे कहते हैं ?
 
समाधान--पञ्चीकृतपञ्चमहाभूतैः कृतं सत्कर्मजन्यं
सुखदुःखादिभोगायतनं शरीरम्, अस्ति, जायते,
वर्धते, विपरिणमते, अपक्षीयते विनश्यतीति
षड्विकारवदेतत्स्थूलशरीरम् ।
 
अर्थः– पञ्चीकृत* अर्थात् पश्ञ्चीकरण किये हुये जो पञ्च महा-
भूत, तिनसे रचा हुआ। फिर कैसा है कि पुण्य व पाप रूपी कर्मों
के साथ उत्पन्न होने वाला तथा उसी पुण्य व पाप रूपी कर्मों
के फल, सुख दुःखादिकों के भोगने वाला यह स्थूल शरीर है ।
और 'अस्ति', कहिये इस समय में मौजूद है। और ('जायते')
फिर भी होगा। होकर के यह क्या करता है ? 'वर्धते' दिन
रात बढ़ा करता है। बढ़ता हुआ। थी विशेषता यह रखता है कि
हर समय एक रूप को धारण नहीं करता जैसे बाल्यावस्था में
कैसी शक्न रहती है, पश्चात् युवावस्था उससे मित्र रूप धारण
करती है, और वृद्धावस्था इन से मित्ररूप धारण करती है, यही
 
---
 
* परन्तु यहाँ पर यह शका हुई होगो कि पञ्जीकरण किसे कहते है ?
इस शंका को हम आगे वर्णन करेंगे यहाँ प्रसङ्ग के बाहर की बात होती है।