Original

कुदृष्टिजालेन स विप्रयुक्तो लोकं तथाभूतम् अवेक्षमाणः ।ज्ञानाश्रयां प्रीतिम् उपाजगाम भूयः प्रसादं च गुराव् इयाय ॥ ३० ॥

Segmented

कुदृष्टि-जालेन स विप्रयुक्तो लोकम् तथाभूतम् अवेक्षमाणः ज्ञान-आश्रयाम् प्रीतिम् उपाजगाम भूयः प्रसादम् च गुरौ इयाय

Analysis

Word Lemma Parse
कुदृष्टि कुदृष्टि pos=n,comp=y
जालेन जाल pos=n,g=n,c=3,n=s
तद् pos=n,g=m,c=1,n=s
विप्रयुक्तो विप्रयुज् pos=va,g=m,c=1,n=s,f=part
लोकम् लोक pos=n,g=m,c=2,n=s
तथाभूतम् तथाभूत pos=a,g=m,c=2,n=s
अवेक्षमाणः अवेक्ष् pos=va,g=m,c=1,n=s,f=part
ज्ञान ज्ञान pos=n,comp=y
आश्रयाम् आश्रय pos=n,g=f,c=2,n=s
प्रीतिम् प्रीति pos=n,g=f,c=2,n=s
उपाजगाम उपागम् pos=v,p=3,n=s,l=lit
भूयः भूयस् pos=i
प्रसादम् प्रसाद pos=n,g=m,c=2,n=s
pos=i
गुरौ गुरु pos=n,g=m,c=7,n=s
इयाय pos=v,p=3,n=s,l=lit