Original

भिन्नमर्याद निर्लज्ज चारित्रेष्वनवस्थित ।दर्पान्मृत्युमुपादाय शूरोऽहमिति मन्यसे ॥ १४ ॥

Segmented

भिन्न-मर्याद निर्लज्ज चारित्रेषु अनवस्थितैः दर्पतः मृत्युम् उपादाय शूरो ऽहम् इति मन्यसे

Analysis

Word Lemma Parse
भिन्न भिद् pos=va,comp=y,f=part
मर्याद मर्यादा pos=n,g=m,c=8,n=s
निर्लज्ज निर्लज्ज pos=a,g=m,c=8,n=s
चारित्रेषु चारित्र pos=n,g=n,c=7,n=p
अनवस्थितैः अनवस्थित pos=a,g=m,c=8,n=s
दर्पतः दर्प pos=n,g=m,c=5,n=s
मृत्युम् मृत्यु pos=n,g=m,c=2,n=s
उपादाय उपादा pos=vi
शूरो शूर pos=n,g=m,c=1,n=s
ऽहम् मद् pos=n,g=,c=1,n=s
इति इति pos=i
मन्यसे मन् pos=v,p=2,n=s,l=lat