Original

रजश्च महदुद्भूतं शान्तं रुधिरवृष्टिभिः ।मही चाप्यभवद्दुर्गा कबन्धशतसंकुला ॥ ३४ ॥

Segmented

रजः च महद् उद्भूतम् शान्तम् रुधिर-वृष्टिभिः मही च अपि अभवत् दुर्गा कबन्ध-शत-संकुला

Analysis

Word Lemma Parse
रजः रजस् pos=n,g=n,c=1,n=s
pos=i
महद् महत् pos=a,g=n,c=1,n=s
उद्भूतम् उद्भू pos=va,g=n,c=1,n=s,f=part
शान्तम् शम् pos=va,g=n,c=1,n=s,f=part
रुधिर रुधिर pos=n,comp=y
वृष्टिभिः वृष्टि pos=n,g=f,c=3,n=p
मही मही pos=n,g=f,c=1,n=s
pos=i
अपि अपि pos=i
अभवत् भू pos=v,p=3,n=s,l=lan
दुर्गा दुर्ग pos=a,g=f,c=1,n=s
कबन्ध कबन्ध pos=n,comp=y
शत शत pos=n,comp=y
संकुला संकुल pos=a,g=f,c=1,n=s