Original

श्रीः सुखस्येह संवासः सा चापि परिपन्थिनी ।ब्राह्मी सुदुर्लभा श्रीर्हि प्रज्ञाहीनेन क्षत्रिय ॥ ३१ ॥

Segmented

श्रीः सुखस्य इह संवासः सा च अपि परिपन्थिनी ब्राह्मी सु दुर्लभा श्रीः हि प्रज्ञा-हीनेन क्षत्रिय

Analysis

Word Lemma Parse
श्रीः श्री pos=n,g=f,c=1,n=s
सुखस्य सुख pos=n,g=n,c=6,n=s
इह इह pos=i
संवासः संवास pos=n,g=m,c=1,n=s
सा तद् pos=n,g=f,c=1,n=s
pos=i
अपि अपि pos=i
परिपन्थिनी परिपन्थिन् pos=a,g=f,c=1,n=s
ब्राह्मी ब्राह्म pos=a,g=f,c=1,n=s
सु सु pos=i
दुर्लभा दुर्लभ pos=a,g=f,c=1,n=s
श्रीः श्री pos=n,g=f,c=1,n=s
हि हि pos=i
प्रज्ञा प्रज्ञा pos=n,comp=y
हीनेन हा pos=va,g=m,c=3,n=s,f=part
क्षत्रिय क्षत्रिय pos=n,g=m,c=8,n=s