Original

मरुद्गण उपस्पृश्य पितॄणामाश्रमे शुचिः ।वैवस्वतस्य तीर्थे च तीर्थभूतो भवेन्नरः ॥ ३७ ॥

Segmented

मरुद्गण उपस्पृश्य पितॄणाम् आश्रमे शुचिः वैवस्वतस्य तीर्थे च तीर्थ-भूतः भवेत् नरः

Analysis

Word Lemma Parse
मरुद्गण मरुद्गण pos=n,g=m,c=7,n=s
उपस्पृश्य उपस्पृश् pos=vi
पितॄणाम् पितृ pos=n,g=m,c=6,n=p
आश्रमे आश्रम pos=n,g=m,c=7,n=s
शुचिः शुचि pos=a,g=m,c=1,n=s
वैवस्वतस्य वैवस्वत pos=n,g=m,c=6,n=s
तीर्थे तीर्थ pos=n,g=n,c=7,n=s
pos=i
तीर्थ तीर्थ pos=n,comp=y
भूतः भू pos=va,g=m,c=1,n=s,f=part
भवेत् भू pos=v,p=3,n=s,l=vidhilin
नरः नर pos=n,g=m,c=1,n=s