Original

आरुह्य वातायनमेव शून्यं स्थलं प्रकाशं कुशकाशहीनम् ।वागङ्गदोषान्परिहृत्य मन्त्रं संमन्त्रयेत्कार्यमहीनकालम् ॥ ५४ ॥

Segmented

आरुह्य वातायनम् एव शून्यम् स्थलम् प्रकाशम् कुश-काश-हीनम् वाच्-अङ्ग-दोषान् परिहृत्य मन्त्रम् संमन्त्रयेत् कार्यम् अहीन-कालम्

Analysis

Word Lemma Parse
आरुह्य आरुह् pos=vi
वातायनम् वातायन pos=n,g=n,c=2,n=s
एव एव pos=i
शून्यम् शून्य pos=a,g=n,c=2,n=s
स्थलम् स्थल pos=n,g=n,c=2,n=s
प्रकाशम् प्रकाश pos=a,g=n,c=2,n=s
कुश कुश pos=n,comp=y
काश काश pos=n,comp=y
हीनम् हा pos=va,g=n,c=2,n=s,f=part
वाच् वाच् pos=n,comp=y
अङ्ग अङ्ग pos=n,comp=y
दोषान् दोष pos=n,g=m,c=2,n=p
परिहृत्य परिहृ pos=vi
मन्त्रम् मन्त्र pos=n,g=m,c=2,n=s
संमन्त्रयेत् सम्मन्त्रय् pos=v,p=3,n=s,l=vidhilin
कार्यम् कार्य pos=n,g=n,c=2,n=s
अहीन अहीन pos=a,comp=y
कालम् काल pos=n,g=n,c=2,n=s