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अंशयितृ (पुं० ) [ अंश् + णिच् + तृच् ] विभाजक, बांटने वाला ।
 
अंशल (वि० ) [ अंश लाति ला + क ] साझीदार, हिस्सा पाने का अधिकारी । 2 == अंसल दे०
 
अंशिन् (वि०) (अंश् + इनि ) 1 हिस्सेदार, सहदायभागी, - (पुनर्विभागकरणे) सर्वे वा स्युः समांशिनः, याज्ञ० २।११४, 2 भागों वाला, साझीदार ।
 
अंशु: [ अंश् + कु ] 1 किरण, प्रकाशकिरण, चंड0, घर्म0 गरम किरणों वाला, सूर्य, सूर्याशुभिभिन्नमिवारविन्दम्
- कु० ११३२, चमक, दमक 2 विन्दु या किनारा 3 एक छोटा या सूक्ष्म कण 4 धागे का छोर 5 पोशाक, सजावट, परिधान 6 गति । 'सम0 उदकम् ओस का पानी, -जालम् रश्मिपुंज या प्रभामण्डल, धर, - पतिः, - भृत् - बाणः, - भर्तृ, स्वामिन् –हस्तः
-- सूर्य (किरणों को धारण करने वाला या उनका स्वामी), -पट्टम् एक प्रकार का रेशमी कपड़ा, माला प्रकाश की माला, प्रभामण्डल, मालिन् (पुं० ) सूयं ।
 
अंशुकम् [ अंशु + क अंशवः सूत्राणि विषया यस्य ] 1 कपड़ा, सामान्यतः पोशाक । सितांशुका - विक्रम ० ३।१२
-यत्रांशुकाक्षेपविलज्जितानाम्- कु० १।१४, श0 १।३२ः 2 महीन या सफ़ेद कपड़ा --मेघ० ६४, प्राय: रेशमी
कपड़ा या मलमल 3 ऊपर ओढ़ा जाने वाला वस्त्र, लवादा, अधोवस्त्र भी, 4 पत्ता 5 प्रकाश की मंद लौ ।
 
अंशुमत् (वि०) [अंशु + मतुप् ] 1 प्रभायुक्त, चमकदार, -ज्योतिषां रविरंशुमान् भग० १०।२१ 2 नोकदार ।
--मान् (पुं० ) 1 सूर्य, वालखिल्यैरिवांशुमान् रघु० १५।१०; 2 सगर का पौत्र, दिलीप का पिता और असमंजस का पुत्र ।
 
अंशुमत्फला - केले का पौधा ।
 
अंशुल ( वि० ) [ अंशुं प्रभां प्रतिभां वा लाति-ला क] चमकदार, प्रभायुक्त --लः चाणक्य मुनि ।
 
अंस् (चु० पर० अंसयति- अंसापयति) दे० अंश् ।
 
अंसः [अंस् । अच्] 1 भाग, खंड दे० अंश, 2 कंधा, अंमफलक, कंधे की हड्डी । सम0 कूट: बैल या साँड का डिल्ल
अथवा कुव्व, कंधों के बीच का उभार, --त्रम् 1 कंधों की रक्षा के लिए कवच 2 धनुष, फलक: रीढ़ का ऊपरी भाग
--भार: कंधे पर रखा गया भार या जूआ, --भारिक, भारिन् ( वि० ) ( अंसे ) कंधे पर जुआ या भार ढोने वाला --विवर्तिन् (वि० ) कंधों की ओर मुड़ा हुआ, --मुखमंसविवति पक्ष्मलाक्ष्याः, -- श० ३।२४।
 
अंसल (वि०) [अंस् + लच्] बलवान्, हृष्टपुष्ट, शक्तिशाली मज़बूत कंधों वाला, --युवा युगव्यायतवाहुरंमल: रघु ३।३४ ।
 
अंह् , ( भ्वा० आ० अंहते, अंहितु, अंहित) जाना, समीप जाना, प्रयाण करना आरम्भ करना प्रेर01 भेजना 2 चमकना 3 बोलना ।
 
अंहतिः ती (स्त्री०)अति] 1 भेट
उपहार 2 व्याकुलता, कष्ट, विता, दुख, बीमारी
( वेद० ) ।
 
अंहस् (नपुं० ) - (अहसी आदि) (अम् असून हुकू न ]
1 पाप-सहसा सहनिमहसा विहन अलम्
५।१७ 2 व्याकुलता, कष्ट, निता ।
अंहिति ती (स्त्री०) (अह क्तिन् ग्रहादित्वात् इट् ]
 
उपहार दान ।
 
सम०
 
पः जड
 
अंह्नि (अह किन् अंहति गच्छत्यनेन ) 1 पैर 2 पेड़ की
जड़ ० अध्रि 3 चार की संख्या ।
(पैर) से पीने वाला, वृक्ष, स्कन्धः पैर के तलवे का
ऊपरी हिस्सा ।
 
अक् (स्वा० पर० अकति, अकित) जाना, साप की तरह
टेढा-मेढ़ा चलना ।
 
अकम् [न कम्--सुखम् । सुख का अभाव पीड़ा, विपति, पाप ।
अकच (वि० ) [न. व.] गंजा चः केतु (अवपतनशील
शिरोबिंदु) ।
 
अकनिष्ठ (वि०) [न कनिष्ठ - न० त०] जो सबसे छोटा न
हो (जैसे सबसे बड़ा, मंझला) बड़ा, श्रेष्ठ ष्ठ: गौतम
 
बुद्ध ।
 
अकन्या । न त । जो कुमारी न हो, जो अब कुमारी न
 
रही हो ।
 
से
 
अकर (वि०) (न. ब.) 1 लला, अपाहिज 2 कर या चुंगी
मुक्त 3 अक्रिय, निकम्मा, अकर्मण्य ।
अकरणम् । कृ भावे ल्यट् न त. ] अक्रिया, कार्य का अभाव
अकरणात् मन्दकरणं श्रेयः
तु० अंग्रेजी की कहावतें
'समथिंग इज बैटर दैन नथिंग'
(Something is
better than nothing ; ) बैटर लेट दैन नैवर,
( Better late than never)
न होने से कुछ होना
भला है ; कभी न होने से देर में होना अच्छा है।
(स्त्री० ) [ नञ + कृ अनिः । असफलता,
निराशा, अप्राप्ति, अधिकांशतः कोमने या शाप देने में
प्रयुक्त तस्याकरणिरेवास्तु सिद्धा० भगवान् करे
उसकी आशा पूरी न हो, उसे असफलता मिले ।
अकर्ण (वि० ) [ न. ब. । 1 जिसके कान न हों, बहरा 2
कर्णरहित र्ण साँप ।
 
अकरणिः
 
अकर्तन (वि० ) [ नञ् । कृत् + ल्युट् न. ब. ] ठिंगना ।
अकर्मन् (वि० ) ( न. व. ) 1 निष्क्रिय, आलसी, निकम्मा 2
दुष्ट, पतित 3 (व्या०) अकर्मक र्म (नपुं० ) 1 कार्य
का अभाव 2 अनुचित कार्य, दोष, पाप । सम०
(वि० ) 1 जिसके पास काम न हो, खाली, निठल्ला 2
अपराधी,
कृत् (वि०) कर्म से मक्त या
अनुचित कार्य
करनेवाला भोगः कर्मफल भोगने से मुक्ति का अनुभव ।
 
अन्वित