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(घ) धातुओं के साथ उनके उपसर्गयुक्त रूप अकारादिक्रम से धातु के अन्तर्गत ही दिखलाये गये हैं।
 
(ङ) पद, वाच्य, विशेष अर्थ अथवा उपसर्ग के कारण धातुओं के परिवर्तित रूप ( ) कोष्ठकों में दिखलाये गये हैं ।
 
११. धातुओं के तव्य, अनीय, और य प्रत्यययुक्त कृदन्त रूप प्रायः नहीं दिये गये। शत्रुन्त और शानजन्त विशेषण तथा ता, त्व या य प्रत्यय के लगाने से बने भाववाचक संज्ञा शब्दों को भी पृथक् रूप में नहीं दिया गया ।
ऐसे शब्दों के ज्ञान के लिए विद्यार्थी को व्याकरण का आश्रय लेना अपेक्षित है।
 
जहां ऐसे शब्दों की रूपरचना या अर्थों में कोई विशेषता है उन्हें यथास्थान रख दिया गया है ।
 
12. शब्दों से संबद्ध पौराणिक अन्तःकथाओं को शब्दार्थ के यथार्थ ज्ञान के लिए ( ) कोठकों में संक्षिप्त रूप से रक्खा गया है ।
 
१३. जो शब्द या संबद्ध पौराणिक उपास्थान मूल कोश में स्थान न पा सके उन्हें परिशिष्ट के रूप में कोश के अन्त में जोड़ दिया गया है ।
 
१४. संस्कृत साहित्य में प्रयुक्त छन्दों के ज्ञान के लिए, तथा अन्य भौगोलिक शब्द एवं साहित्यकारों की सामान्य जानकारी के लिए कोश के अन्त में परिशिष्ट जोड़ दिये गये हैं ।