2022-08-20 17:26:32 by anunad
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१. शब्दों को देवनागरी वर्णों में अकारादि क्रम से रक्खा गया है ।
२. पुल्लिंग शब्दों का कर्तृ कारक एकवचन रूप लिखा गया है, इसी प्रकार नपुंसक लिंग शब्दों का भी प्रथमा विभक्ति का एकवचनान्त रूप लिखा है। जो शब्द विभिन्न लिङ्गों में प्रयुक्त होता है, उसके आगे स्त्री०, या
पुं० एवं नपुं० लिखकर दर्शाया गया है ।
विशेषण शब्दों का प्रातिपदिक रूप रखकर उसके आगे वि० लिख दिया गया है ।
३. जो शब्द क्रियाविशेषण के रूप में प्रयुक्त होते हैं तथा विशेषण या संज्ञा से व्युत्पन्न होते हैं उन्हें उस संज्ञा या विशेषण के अन्तर्गत कोष्ठक के अन्दर रक्खा गया है जैसे 'पर' के अन्तर्गत परेण या परे अथवा 'समीप' के अन्तर्गत समीपतः या समीपे ।
४. (क) शब्दों के केवल भिन्न-भिन्न अर्थों को पृथक् अंग्रेजी क्रमांक देकर दर्शाया गया है। सामान्य अर्थाभास को स्पष्ट करने के लिए एक से अधिक पर्याय रखे गये हैं ।
(ख) उद्धृत प्रमाणों के उल्लेख में देवनागरी के अंकों का प्रयोग किया गया है ।
५. जहाँ तक हो सका है शब्दों को प्रयोगाधिक्य तथा महत्त्व की दृष्टि से क्रमबद्ध किया गया है ।
६. प्रत्येक मूल शब्द की संक्षिप्त व्युत्पत्ति [ ] प्रकोष्ठक में दे दी गई है जिससे कि शब्द का यथार्थ ज्ञान हो सके । प्रत्यय और उपसर्ग की सामान्य जानकारी के लिए -- सामान्य प्रत्यय सूचि साथ संलग्न है ।
७. ( क ) समस्त शब्दों को मूल शब्द के अन्तर्गत ही पड़ी रेखा ( = मूल शब्द ) के पश्चात् रक्खा गया है, जैसे 'अग्नि' के अन्तर्गत —होत्र, 'अग्निहोत्र प्रकट करता है ।
( ख ) समस्त शब्दों में -- मूल शब्दों के पश्चात् उत्तरखंड — को मिलाने में सन्धि के नियमानुसार जो परिवर्तन होते हैं उन्हें पाठक को स्वयं जानने का अभ्यास होना चाहिये -- यथा 'पूर्व' के साथ 'अपर' को मिलाने से 'पूर्वापर'; 'अधस्' के आगे 'गतिः' को मिलाने से 'अधोगति' बनता है । कई स्थानों
पर उन समस्त शब्दों को जो सरलता से न समझे जा सकें पूरा का पूरा कोष्ठक में लिख दिया गया है ।
(ग) जहाँ एक समस्त शब्द ही दूसरे समस्त शब्द के प्रथम खण्ड के रूप में प्रयुक्त हुआ है वहाँ उस पूर्वखण्ड को शीर्ष रेखा के साथ लगा कर दर्शाया गया है जैसे -- द्विज ( समस्त शब्द ) में 'इन्द्र' या 'राज' जोड़ना है तो लिखेंगे - इन्द्र, -- "राज, और इसे पढ़ेंगे 'द्विजेन्द्र' या 'द्विजराज' ।
(घ) सभी अलुक् समासयुक्त ( उदा० कुशेशय, मनसिज, हृदिस्पृश् आदि ) शब्द पृथक् रूप से यथास्थान
रक्खे गये हैं। मूल शब्दों के साथ उन्हें नहीं जोड़ा गया ।
८. कृदन्त और तद्धित प्रत्ययों से युक्त शब्दों को मूल शब्दों के साथ न रखकर पृथक् रूप से यथास्थान रक्खा गया है । फलतः 'कूलंकष' 'भयंकर' 'अन्नमय' 'प्रातस्तन' और 'हिमवत्' आदि शब्द 'कूल' और 'भय' आदि मूल शब्दों के अन्तर्गत नहीं मिलेंगे ।
९. स्त्रीलिंग शब्दों को प्रायः पृथक् रूप से लिखा गया है, परन्तु अनेक स्थानों पर पुल्लिंग रूप के साथ ही स्त्रीलिंग रूप दे दिया गया है ।
१०. (क) धातुओं के आगे आ० ( आत्मनेपदी ), पर० ( परस्मैपदी ) तथा उभ० ( उभयपदी), के साथ गणद्योतक चिह्न भी लगा दिये गये हैं।
(ख) प्रत्येक धातु का पद, गण, लकार ( ) कोष्ठ के अन्दर धातु के आगे रूप के साथ दे दिया गया है ।
(ग) धातु के लट् लकार का प्रथम पुरुष का एक वचमांत रूप ही लिखा गया है।
१. शब्दों को देवनागरी वर्णों में अकारादि क्रम से रक्खा गया है ।
२. पुल्लिंग शब्दों का कर्तृ कारक एकवचन रूप लिखा गया है, इसी प्रकार नपुंसक लिंग शब्दों का भी प्रथमा विभक्ति का एकवचनान्त रूप लिखा है। जो शब्द विभिन्न लिङ्गों में प्रयुक्त होता है, उसके आगे स्त्री०, या
पुं० एवं नपुं० लिखकर दर्शाया गया है ।
विशेषण शब्दों का प्रातिपदिक रूप रखकर उसके आगे वि० लिख दिया गया है ।
३. जो शब्द क्रियाविशेषण के रूप में प्रयुक्त होते हैं तथा विशेषण या संज्ञा से व्युत्पन्न होते हैं उन्हें उस संज्ञा या विशेषण के अन्तर्गत कोष्ठक के अन्दर रक्खा गया है जैसे 'पर' के अन्तर्गत परेण या परे अथवा 'समीप' के अन्तर्गत समीपतः या समीपे ।
४. (क) शब्दों के केवल भिन्न-भिन्न अर्थों को पृथक् अंग्रेजी क्रमांक देकर दर्शाया गया है। सामान्य अर्थाभास को स्पष्ट करने के लिए एक से अधिक पर्याय रखे गये हैं ।
(ख) उद्धृत प्रमाणों के उल्लेख में देवनागरी के अंकों का प्रयोग किया गया है ।
५. जहाँ तक हो सका है शब्दों को प्रयोगाधिक्य तथा महत्त्व की दृष्टि से क्रमबद्ध किया गया है ।
६. प्रत्येक मूल शब्द की संक्षिप्त व्युत्पत्ति [ ] प्रकोष्ठक में दे दी गई है जिससे कि शब्द का यथार्थ ज्ञान हो सके । प्रत्यय और उपसर्ग की सामान्य जानकारी के लिए -- सामान्य प्रत्यय सूचि साथ संलग्न है ।
७. ( क ) समस्त शब्दों को मूल शब्द के अन्तर्गत ही पड़ी रेखा ( = मूल शब्द ) के पश्चात् रक्खा गया है, जैसे 'अग्नि' के अन्तर्गत —होत्र, 'अग्निहोत्र प्रकट करता है ।
( ख ) समस्त शब्दों में -- मूल शब्दों के पश्चात् उत्तरखंड — को मिलाने में सन्धि के नियमानुसार जो परिवर्तन होते हैं उन्हें पाठक को स्वयं जानने का अभ्यास होना चाहिये -- यथा 'पूर्व' के साथ 'अपर' को मिलाने से 'पूर्वापर'; 'अधस्' के आगे 'गतिः' को मिलाने से 'अधोगति' बनता है । कई स्थानों
पर उन समस्त शब्दों को जो सरलता से न समझे जा सकें पूरा का पूरा कोष्ठक में लिख दिया गया है ।
(ग) जहाँ एक समस्त शब्द ही दूसरे समस्त शब्द के प्रथम खण्ड के रूप में प्रयुक्त हुआ है वहाँ उस पूर्वखण्ड को शीर्ष रेखा के साथ लगा कर दर्शाया गया है जैसे -- द्विज ( समस्त शब्द ) में 'इन्द्र' या 'राज' जोड़ना है तो लिखेंगे - इन्द्र, -- "राज, और इसे पढ़ेंगे 'द्विजेन्द्र' या 'द्विजराज' ।
(घ) सभी अलुक् समासयुक्त ( उदा० कुशेशय, मनसिज, हृदिस्पृश् आदि ) शब्द पृथक् रूप से यथास्थान
रक्खे गये हैं। मूल शब्दों के साथ उन्हें नहीं जोड़ा गया ।
८. कृदन्त और तद्धित प्रत्ययों से युक्त शब्दों को मूल शब्दों के साथ न रखकर पृथक् रूप से यथास्थान रक्खा गया है । फलतः 'कूलंकष' 'भयंकर' 'अन्नमय' 'प्रातस्तन' और 'हिमवत्' आदि शब्द 'कूल' और 'भय' आदि मूल शब्दों के अन्तर्गत नहीं मिलेंगे ।
९. स्त्रीलिंग शब्दों को प्रायः पृथक् रूप से लिखा गया है, परन्तु अनेक स्थानों पर पुल्लिंग रूप के साथ ही स्त्रीलिंग रूप दे दिया गया है ।
१०. (क) धातुओं के आगे आ० ( आत्मनेपदी ), पर० ( परस्मैपदी ) तथा उभ० ( उभयपदी), के साथ गणद्योतक चिह्न भी लगा दिये गये हैं।
(ख) प्रत्येक धातु का पद, गण, लकार ( ) कोष्ठ के अन्दर धातु के आगे रूप के साथ दे दिया गया है ।
(ग) धातु के लट् लकार का प्रथम पुरुष का एक वचमांत रूप ही लिखा गया है।