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दूरस्थो ऽपि समीपस्थो
देहभावं परित्यज्य
 
धनी पूज्यो धनी श्लाघ्यो
धर्ममर्थ व्यतिक्रम्य
 
न पश्यति मदान्धो ऽपि
 
न साहसमनारुह्य
नास्ति कामसमो व्याधिः
निद्रादौ जागरस्यान्ते
निरन्तरसुखापेक्षा
 
पञ्च कामयते कुन्ती
पदे पदे निधानानि
 
पराधिकारजां चर्चा
 
पुत्रे जाते
पुनदीराः
प्रस्तावसदृशं वाक्यं
 
प्रावृट्काले यात्रा
 
बण्ड: शकुनिको
बलं मूर्खस्य मौनत्व॰
बुद्धिर्यस्य बलं तस्य
 
भट्टिर्नष्टो भारविश्चापि
 
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं
मन्त्रे तोर्थे
 
मातापित्रोरपोष्टारं
 
माम गीतं न गातव्य°
 
327 (11)3
 
323 (7)25
 
325 (9) 32
 
323 (7)4
 
320 (4) 31
 
359 (43)12
 
324 (8)₁
 
323 (7)27
 
319 (3) 13
 
319 (3)9
 
319 (3)15
 
340 (24)19
 
319 (3) 20
 
321 (5)10
 
322 (6)33
 
326 (10) 22
 
321 (5) 26
 
331 (15) 26
 
365 (49)4
 
381 (65)16
 
367 (51) 21
 
319 (3) 24
 
323 (7)⁹
 
339 (23)18
 
यस्मिन्देशे न संमानो
 
यस्य चित्तं द्रवीभूतं
 
यस्य पुत्रः पितुर्भक्तो
यस्य भायी विरूपाक्षी
 
यस्यार्थीस्तस्य मित्राणि
 
यस्यास्ति वित्तं स नरः
 
यावज्जीवं सुखं जीवे
युक्तियुक्तमुपादेयं
 
रम्या रामा यदि
राज्ञी न च स्पृश त्य°
 
रिक्तपाणिर्न प्रविशेद
 
वरं प्राण परित्यागो
 
वाचा यद्यत्प्रतिज्ञातं
 
वाणी सरस्वती यस्य
 
वित्तानुसारिणो धर्मः
 
विप्रो वाप्यथवा शूद्र०
 
शठे प्रतिशठं
 
शास्त्रं सुनिश्चितधियामपि
 
सद्भ्यो यथार्हम
 
संतप्तायसि संस्थितस्य
 
संतोषस्त्रिषु कर्तव्यो
सिद्धमन्त्रौषधं
 
सिद्धे ह्यन्ने फले पक्के
 
सुभाषितेन गीतेन
स्थानत्यागं प्रकुर्वन्ति
स्वातन्त्र्यं पितृमन्दिरेषु
 
332 (16) 22
323 (7)⁹
 
325 (9)18
 
374 (58)36
 
325 (9)34
 
326 (10)₁
 
328 (12)₁
 
334 (18) 12
 
320 (4)16
 
334 (18) 28
 
331 (15)31
 
353 (37)12
 
329 (13)14
 
320 (4)14
 
326 (10)10
 
325 (9)11
 
384 (68)26
 
373 (57)10
 
319 (3)₁
 
328 (12)6
 
320 (4) 28
 
347 (31)3
 
326 (10) 25
 
322 (6)₁
 
332 (16) 24
 
328 (12) 10