This page has been fully proofread once and needs a second look.

गौडरीतिस्फुटाटोप विकटार्थपदोद्भटः ।

सुमतीन्द्रकृतिर्दीप्रानुप्रासो रामदण्डकः ॥
 

 
सतां मौलिषु कोटीरन्वतंसन्कर्णवीथिषु ।

हारन्कण्ठे च रामेण करुणां मयि कारयेत् ॥ २ ॥
 

 
सतां मौलिश्रवः कण्ठे किरीटोत्तंसहारकः ।

रोचतां सौमतीन्द्रोऽयं <error>हड़ये</error> <fix>हृदये</fix> रामदण्डकः ॥ ३॥
 

 
रत्नश्रीरुचिराकृतिस्फुरदुरो रम्यप्रभावेन्दिरा

सक्तं मुद्रिततृष्णया सरसया चित्तस्वपाकस्फुरा ।

वज्राद्दुष्करभाविभासुरशरातंकिक्षपाटंधुरा
 

राजन्तं रजनीसहायवदनं रामं गिरामो गिरा ॥ ४॥
 

 
इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यपदवाक्यप्रमाण- पारावार
 
सर्व

पारङ्ग
सर्वतन्त्रस्वतन्त्र
 
श्रीमद्वैष्णवसिद्धान्तप्रतिष्ठापनाचार्य
श्रीमन्मूलरघुपतिवेदव्यासदेव
 
श्रीपादपद्माराधक जगद्गुरु
श्रीमन्मध्वाचार्यमुख्यमहासंस्थानाधीश्वर श्रीमद्राघवेन्द्रतीर्थ
 
-
गुरुसार्वभौममठीयदिग्विजयविद्यासिंहा
 
सनाधीश
 

श्रीमत्परिमळाचार्यान्तेवसदग्रणि
 
श्रीमद्योगीन्द्रतीर्थ
 

श्रीपादकरकमलसञ्जात
 
श्रीमत्सूरीन्द्रतीर्थ श्रीपादवरकुमारक
 

कविकण्टीरव श्रीमत्सुमतीन्द्रतीर्थगुरुपादविरचितः श्रीरामदण्डकः
 

समाप्तः ॥
 
पारङ्गत
 
श्रीमद्वैष्णवसिद्धान्तप्रतिष्ठापनाचार्य
 
श्रीपादपद्माराधक
 

 
॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
 
4
 
जगद्गुरु