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तृतीयप्रताने पञ्चमः स्तबका
 
भास्वदम्भोजनिलया निर्भाग्यजनदुर्लभा ।
भागधेयं भावभृतां तनोतु प्रतिभामयम् ॥ १४ ॥
 
निर्भाग्य-
जनदुर्ल
 
स्-तो भ क्त गो व ह ग या स्तुतपदाम्बु
 
ग्र ल्कुन्देन्दु मन्दा र श र' द व स म ष्र
 

 
शं
 

 
खवबन्धः ॥
 
खदम्भोज-
निलया
 
नोतुप्रतिभा विभृतांत
 
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