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काव्यकल्पलतावृत्तिः
 
एते. ह्यन्येऽपि द्वयक्षरास्त्र्यक्षराश्चतुरक्षरा वा अकारादयः शब्दानामादौ
वर्णाकर्षणाय प्रयोज्याः, श्लेषो भवति । यथा - अककमलशाली, पक्षे मलशाली ।
अच्छच्छगणशाली पक्षे गणशाली। अलङ्केशयुक्तः, पक्षे केशयुक्तः इत्यादिशब्दाः
ज्ञेयाः ।
 
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कककुकुखखुगगौघोचचाचि घयस्तथा ।
जातातोस्थिददादूषधोननीपपापु ॥ ४० ॥
 
एफस्फा बाबी बवेबैभभामा मुशशाशूशंसासोसुस ।
सौहहाहीक्षक्षाक्षीक्षौ एतेषां रहितः पुरः ॥ ४१ ॥
 
एतेषां वर्णानामग्रे रहितशब्द: प्रयोज्य: । करहित कीरहितेत्यादि । एतैः
शब्दैर्वंर्णा आकृष्यन्ते । करहितकमलशाली, पक्षे मलशाली । कीरहितबन्धुकीयुतः,
पक्षे बन्धुयुतः । इत्यादि ज्ञेयम् ।
 
स्मेरम्वरस्वरस्मरद्वारस्थावरतुषारमुख्यानाम् ।
 
पारावारादीनां रान्तानामग्रतो हितो योज्यः ॥ ४२ ॥
 
यथा – स्मेरहित, ज्वरहितेत्यादि । स्मरहितस्मरणशाली, पक्षे रणशाली ।
इत्याद्यूह्यम् । एवमन्येऽपि शब्दाः, यथा – अहीनम् अलङ्कृतं नूनम् । लकारान्त-
लाकारान्तशब्दानामग्रे उपयुक्तः शब्दः प्रयोज्य: । जलोपयुक्तः बिलोपयुक्तः
कलोपयुक्तः वेलोपयुक्तः । आकारोपधपकारान्तशब्दानामग्रे नोदशब्दः प्रयोज्यः ।
तथा उपपाद, कृतरचितादिशब्दाः प्रयोज्याः । यथा । कृततापनोद: रचित-
वापनोदः । अथ श्लेषसाधकाः ककारान्ताः ककारादिप्रमुखाश्च शब्दा लिख्यन्ते ।
यथा - नाक निष्क पिक काक शुक बक पक भेक घूक स्तोक अलीक पुलक
अंशुक गर्भक ताटङ्क हंसक कृषिक कर्षक कौतुक श्यामाक नरक कलङ्क नन्दक
तारक करक गुह्यक विपाक अलिक कटक स्थानक स्तबक बन्धूक गण्डक जाहक
चन्द्रक तर्णक व्यलीक विटक जालक स्तस्तिक मणिक पथिक हतक लग्नक
नाविक गणक कविक समीक अनीक फलक बन्धुक पृथुक दारुक जनक अम्बक
तिलक अंशुक अलक नालिक रजक जालिक लब्धक स्फोटक आर्द्रक माक्षिक
पातक तलक उदक अधिक मस्तक वनौक अङ्गारक अपवरक उच्छीर्षक प्राघुणक
वनीपक दौवारिक आरालिक प्रबोधक विशेषक भयानक रणरणिक वैकटिक ।
एषामग्रे आकर कर कल करि कपि कवि कम्र कशा कन्या कर्ण कच कफ
कच्छ कपालि कदर्यं कपर्द कलङ्क कदलो करञ्ज कपाल कलिङ्ग कपोत कपाट