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(४)
 

 
शिवजी की आरती
 

 
कर्पूरगौरं करुणावतारं, संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।

सदा वसन्तं हृदयारविन्दे, भवं भवानीसहितं नमामि ॥

जय शिव ओंकारा, हर शिव ओंकारा ।

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, अर्द्धाङ्गी धारा ॥
 
हर
 
हर हर
 

 
हर
 
हर हर
 
महादेव ॥

राजै ।
 

 
एकानन
 

 
चतुरानन, पञ्चानन
 

 
हंसासन गरुड़ासन, वृषवाहन साजै ॥

दोयभुज चारु चतुरभुज, दशभुज ते सोहैं ।

तीनों रूप निरखताँ, त्रिभुवन जन मोहैं ॥

अक्षमाला बनमाला, मुण्डमालाधारी ।

चन्दन मृगमद चन्दा, भाले शुभकारी ॥

श्वेताम्बर पीताम्बर, बाघाम्बर अंगे ।

सनकादिक ब्रह्मादिक, भूतादिक संगे ।

करमध्ये च कमण्डलु, चक्र त्रिशूल धरता ।

जगकर्ता दुखहर्ता,

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, जानत अविवेका ।

प्रणवाक्षर (ॐ) मध्ये, ये तीनों एका ॥

त्रिगुण स्वामी की आरती, जो कोई नर गावै ।

भाव भक्ति के कारण, मनवांछित फल पावै ॥

जय शिव ओंकारा, हर जय शिव ओंकारा ।

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, अर्द्धाङ्गी धारा ॥

महादेव ॥
 

 
जगपालनकरता ॥
 
हर
 

 
हर