We're performing server updates until 1 November. Learn more.

This page does not need to be proofread.

प्रस्तावना
 

 
*
 

 
शंकरभक्तगण
 

 
!
 

 
यह परमपावन, भूतभावन, चन्द्रचूड शंकरजी का स्तोत्र

संस्कृतव्याख्या, भाषाछन्द और हिन्दीटीकासहित आपके

विनोदार्थ प्रस्तुत है। यह वही स्तोत्र है कि, रावण ने जिसको

रचकर और वारंवार जटाजूटधारी, कामारि, त्रिपुरारि, भोलानाथ

शिवजी को सुनाकर अनुपम फल पाया था, अतएव इसकी

उत्तमता स्वयं प्रकट है। यह जैसा दिव्य है तथा इसे पाठ करने में

जो आनन्द आता है, वैसा ही यह अमोघ फल का दाता है और

जैसा क्लिष्ट है, वह भी विदित ही है। इसलिये पाठकों के हित

के लिये कल्याणपुरनिवासी परमधार्मिक श्रीयुत सेठजी गंगाविष्णु

श्रीकृष्णदासजी की अनुमति से इस स्तोत्र की संस्कृत तथा हिन्दी

टीका बनाकर पुनर्मुद्रणादि अधिकारसहित उनको अर्पण करता

हूं। आशा करता हूं कि, महादेवजी के भक्तजन इसे पढकर धर्म,

अर्थ, काम, मोक्ष के भागी होंगे।
 

 
भाषानुवादक : रामेश्वरभट्ट
 

 
आगरा