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व्याख्यानत्रयसहितम्
 
विवाह की ध्वनि संसार की जय करे ॥१५॥
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
 
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां मदगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
 
महान
 
(२३)
 
लक्ष्मीं प्रसादसमये प्रददाति शम्भुः ॥१६॥
व्याख्या- पूजेति। यो (मनुष्यः) पूजावसानसमये (शंकरपूजा-
करणानन्तरकाले) दशवक्त्रगीतं (दश वक्त्राणि मुखानि यस्य स
दशवक्त्रो रावणस्तेन गीतमुच्चारितं स्तोत्रमिति यावत्) शम्भुपूजनपरं
(शम्भोः पूजनं तत् परं प्रधानं यस्मिन् कर्मणि तत्तथा) पठति (व्यक्त-
वाचोच्चरति ) शम्भुः (महादेवः) प्रसाद समये (प्रसन्नकाले) तस्य (नरस्य)
मदगजेन्द्रतुरनयुक्ताम् (मदयुक्ता गजास्तेषु इन्द्राः श्रेष्ठतमास्तुरङ्गा अश्वाश्च
तैर्युक्तां सहिताम्) स्थिरामचञ्चलां लक्ष्मीं प्रददाति ॥ १६॥
छंद - जो मनुष्य मन लाय शम्भुसेवा पूरण करि ।
पढहि जो यह दशशीश को सुस्तोत्र ध्यान धरि ॥
ताकौं परम प्रसन्न होय शंकर करि निर्भय ।
 
दोहा
 
विधि हर हरि गणपति शिवा, गिरा चरण शिर नाय ।
श्रीशिवताण्डवकी करी, भाषा छन्द बनाय ॥ १ ॥
लाल लाल लोचन ललित, सोह बाल शशि भाल ।
हिमतनयाके प्राणप्रिय, हमपर होहु दयाल ॥२॥
 
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देत मत्त गज वाजिराजियुत संपति अक्षय ॥१६॥
भाषार्थ- जो मनुष्य पूजा के अन्त में इस रावण के बनाये हुए स्तोत्र का
पाठ मन लगाकर करता है, उसको महादेवजी मत्त हाथी, घोडे इनके सहित
स्थिर लक्ष्मी देते हैं ॥ १६॥