This page has been fully proofread once and needs a second look.

छंद - इन्द्र आदि सुरसीसमुकुट परि पुहुप परागनु ।
धसर भय भुव पीठ पटलि पद धरत सुजगनु ॥
सर्पराजका स्रजनु सज्यौ वर जटाजूट सम ।
सदा श्रेयकर हो चकोरबांधव-शेखर मम ॥ ६॥
 
भाषार्थ- इन्द्र आदि देवताओं के मुकुट में गुंफित पुष्पमालाओं के
पराग से जिनके चरण धरने की भूमि धूसर वर्ण की हो रही है और सर्पराज की
माला से जिन्हों ने जटाजूट बांधी है और जिनके मस्तक पर चन्द्रमा शोभायमान
हैं, ऐसे शंकर हमें बहुत काल तक धर्म आदि चतुवर्ग दें ॥६॥
 
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक -
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥७॥
 
पदयो- करालेति । मम त्रिलोचने रतिः प्रीतिरस्तु । कथम्भूते
त्रिलोचने? धराधरेन्द्रनन्दिन्याः कुचाग्रयोः चित्रकपत्राणां प्रकल्पने
एकशिल्पिनि तस्मिन् । पुनः कथम्भूते? करालभालपट्टिकायां धग-
द्धगद्धगदिति शब्देन ज्वलन् चासौ धनञ्जयस्तस्मिन्नाहुतीकृतो
नाहुतिराहुतिः कृतः, पञ्च सायकाः बाणा यस्य सः पंचसायकः ।
प्रचण्डश्चासौ पञ्चसायकः कामो येन स तथाभूतो महादेव इति ॥७॥
 
व्याख्या- करालेति । करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्धनञ्ज-
याहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके (करालं भयङ्करं यद्भालं तदेव पट्टिका
पीठस्तस्यां धगद्धगद्धगदिति शब्देन ज्वलन् धनञ्जयोऽग्निस्तस्मिन्नाहुतीकृतः
प्रचण्डो भयङ्करः पञ्चसायकः कामदेवो येन स तस्मिन्) धराधरेन्द्रनन्दिनी-
कुचाग्रचिपत्रकप्रकल्पनैकशिल्पिनि (धराधरेन्द्रस्य हिमालयस्य नन्दिनी
पुत्री पार्वती तस्याः कुचाग्रे स्तनयोरग्रभागे चित्रवत्पत्रकं तिलकविशेषस्तस्य
प्रकल्पने रचनाविशेषे एको मुख्यः शिल्पी चित्रकर्मा तस्मिन्) त्रिलोचने