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व्याख्यानत्रयसहितम्
 
(११)
 
भाषार्थ- अपने मस्तकरूपी आंगन में जलती हुई अग्नि की चिन्गारी से
कामदेव को भस्म करनेवाले तथा ब्रह्मादि देवताओं से नमस्कार किये गये
और अमृतरूप किरणोंवाले चन्द्रमा की रेखा से जिनका मस्तक शोभित हो
रहा है, वे कपाल को धारण किये और जिनके जटाजूट में गङ्गाजी शोभायमान
है, ऐसे तेजरूप सदाशिवजी हमें धर्म आदि संपत्ति दें ॥५॥
 
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-
प्रसूनधूलिधोरणीविधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥६॥
पदयो- सहस्रेति । चकोराणां पक्षिविशेषाणां बन्धुस्तदानन्दकर्तृ-
त्वात्स शेखरो यस्य स चकोरबन्धुशेखरः नोऽस्माकं श्रिये ब्रह्मविद्यात-
पोलक्ष्म्यै चिराय जायताम् । किम्भूतः ? भुजङ्गानां राजानः भुजङ्गराजा-
स्तेषां माला तया निबद्धो जाटजूटो येन, जटानामयं जाटः स चासौ
जूटो जाटजूटो भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः । पुनः कीदृशः ?
सहस्रं लोचनानि यस्य स इन्द्रस्तत्प्रभृतयश्च तेऽशेषलेखास्तेषामिन्द्रा-
दीनां देवानां ये शेखरा ब्रह्मादयस्तेषां यानि प्रसूनानि पुष्पाणि तेषां
धूलयस्तासां या धोरणी तया विधूसरा अंघ्रिपीठभूर्यस्य सः ॥६॥
 
व्याख्या- सहस्रेति। सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखरप्रसूनधूलि -
धोरणीविधूसरांघ्रिपीठभूः। (सहस्रलोचन इन्द्रः स प्रभृतिरादिर्येषां ते ये
अशेषलेखाः सर्वदेवास्तेषां शेखराणां मुकुटानां प्रसूनानि पुष्पाणि तेषां
धूलिनां रजसां या धोरणी पंक्तिस्तया विधूसरा लिप्ता अंघ्योश्चरणयोः
पीठस्य भूर्यस्य सः) भूजङ्गराजमालया (भुजङ्गानां राजा वासुकिस्तस्य
माला तया) निबद्धजाटजूटकः (निबद्धः सम्बद्धो जाटजूटो येन सः)
चकोरबन्धुशेखरः (चकोराणां बन्धुश्चन्द्रः स शेखरः शिरोभूषणं यस्य
सः) चिराय बहुकालं श्रिये चतुर्वर्गरूपसम्पत्तये जायताम् भवतु॥६॥