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हे पक्षिनाग०.
हे पान्थ प्रिय
हे पान्था: स्वगृहाणि
हमन्ते शिशिरे
हेममञ्जरिमालाभ्यां
हेलाविच्छित्ति ०
हेलोल्लासितकलील ●
 
अध्वन्यैर्मकरन्द्र ०
 
उपरि घनं घनपटलं
 
एकाकरणढेकी ०.
 
किं गतेन यदि
 
श्लोकानुक्रमणिका
 
808 । हे हेमन्न स्मरिष्यामि
 
3931
 
होमपूजाशन ●
हस्वताव यो
 

 
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इस्वश्रवणला ङ्गुल
हेषिते स्कन्धमुद्दिष्टं
 
होते रखलिते
 
परिशिष्टम्
 
3821 । तद्वद्बुद्धिमशेषाणां..
 
3886 दृष्टा प्रागुपविष्टा
 
2033 पक्षमाग्रग्रथिताश्रु०
 
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