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श्ममासुरभि०
श्रमं च कुर्तत
श्रमयति शरीरं
श्रमेण चित्रयोधित्वं
 
श्रमेणास्खलितं
 
श्रवणाञ्जलि
श्रवोमलेन..
श्रीफलसमवक्षोजा
 
श्रीभोज साम्यं तव
श्रीमूलमण्डनं यस्य
श्रीविष्णुधर्मो०
श्रुनं दृष्टं स्पृष्टं..
श्रुतिस्मृत्युक्तमाचारं
श्रुत्वा कुम्भसमुद्भवेन
वापि यदनभ्यासो
श्रुत्वा बालमृगी..
श्रूयतो ज्ञान ०.
श्रूयतां वर्मसर्वस्वं.
श्रेयो घनार्थिनां
श्रोत्रियं सुभगा
लाध्यं कर्पास
श्लाघ्या महता ०
श्लेषे केचन
श्लोकार्तेन प्रवक्ष्यामि
श्रवानभल्लभषणाः.
श्वा चेद्द्वरस्यामि०
श्रा नावुभावप्यभि०
श्वासः किं त्वरिता
श्वेनं पढ़ समभि०
श्वेतवच घृत
श्वेताद्रिकणिका ०.
श्वेता द्विजाः क्षत्रियकाश्च..
ती विश्वंभरकः.
 
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बटुकर्णो भिद्यते मन्त्रः
बटविशद्वर्ष ०.
षडक्षरेण
षडङ्गुलो भवेन्मध्यः
षड़जं वदेन्मयूरो.
षड्जर्षभ
षड्जादयः स्वराः
पडि: प्राणैः पलं
 
श्लोकानुक्रमणिका
 
2963
 
1826
 
3302
 
1813
 
1812
 
173
 
2903
 
3094
 
1253
 
1605
 
4639
 
3087
 
1525
 
1178
 
4188
 
3889
 
4252
 
670
 
672
 
59
 
1054
 
226
 
177
 
पभिर्दन्तैः सिताभ ●
 
पण्णी पदानां वा...
 
षण्मासात्सिध्यने
 
षष्टिवन्वन्तरे.
 
षष्ठं तु तालु
षष्ठीषु तेलं
 

 
संकल्पतन्तावखिला
 
संकेत कुञ्जभुवि
संक्षोभ पयसि..
संख्यातीनाः पुरा..
संख्येया न भवन्ति
 
संगतिः श्रेयसी राजन्
 
संगीतरक्तः
 
संग्रहे तृणकाष्ठानों
 
संग्रामाङ्गणमा ०
 
संतप्तायसि...
 
संताड्य कमपि
संतुष्टे निसृण पुरा०
संतोषामृत ०
संदष्टेधरपल्लवे
संदेहो वैष्णवे
 
संधानं त्रिविधं
 
संधिविग्रहयानानि
 
4420
 
2330
 
2369
 
2383
 
संध्याकाले रुवन्..
 
3507 संध्याताण्डव० देवस्य..
4146 संध्यानाण्डव० भर्गस्य
संध्यानती नर०
संन्यस्तभूपापि
 
2933
 
1892
 
2331
 
संपकेक्षुर स०
2188 संपदा सुस्थित
 
संपदो महनामेव
 
संपश्यन्नामिकाग्रं
 
संप्रति न कल्प०
 
1351 संप्राप्तेवभिवामरे
 
3027
 
संभृत्य महती सेना
693 संभोजनं संकथनं
1638 संमार्जनी व कपमं
 
2047 संमुखं वा समा...
2042 संमुखमयानी
 
2043
 
संवा रमणीय
संगांत साग
 
७५३
 
1699
 
1974
 
1834
 
1819
 
4357
 
660
 
4214
 
3495
 
3844
 
4387
 
1080
 
1396
 
3114
 
2528
 
1225
 
330
 
2561
 
3992
 
310
 
3668
 
528
 
1802
 
1408
 
2464
 
100
 
109
 
65
 
3372
 
2281
 
461
 
118
 
4434
 
766
 
349]
 
1937
 
1395
 
2411
 
1803
 
2711
 
2399
 
3971