शार्ङ्गधरपद्धतिः /765
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७५०
दिनतः पूर्वकाग्रेन
विना मह्यं विना
विना शार्ङ्गधरं
विनैवाम्भोवाहं.
विन्ध्यमन्दर ०
विन्ध्याद्रिः करिसाधने
विपत्यशान्ये
विपदि वैर्य ०
विपन्नं पद्मिन्या
विधुलकुचा वृथु०
विपुलहदया०.
विप्रेभ्यो दक्षिणां
विभागेन समाना०
विमर्शक: शाकुन ०
विमुञ्चन्त्या प्राणा
वियत्पुच्छाच्छोटो०
विरमत घनाः किं
विरमत विरमत मुख्यो
विरम तिमिर
विरम नाथ विमुञ्च.
विरलविरलीभूना•
विरहविषमः कामी
विराजतेस्यास्तिलको
विरामान्तं हु.
विलपति तथा.
विलम्बिनो यत्र
विलासमसृणो
विलिप्तं मधुना चित्रं
विलोक्य संगमे
विकसदसित ०
विवादो धनसं०
विवाहार्ये शुभः
विविक्तः शान्त ०.
विवेकी सघृणो विप्र०
विशदः शम्भुत्येिते.
विशन्नस्थिमुखो
विशाखस्थानके
विशिष्ट कविशंसा
विशुद्धिः कण्टं
विशोधय मही●
विश्रम्य विश्रम्य वन ०
विश्रान्तो दिवस
विश्लेषाकुल:
विश्वस्य हेतु०.
शार्ङ्गधरपद्धतिः
1708 विश्वासहन्ना
4045
1715
3520
1064
1264
1091
209
981
3102
149
1880
1490
2329
3492
82
3898
3432
763
3675
3718
3572
3295
2005
780
2168
15
4299
1350
विश्वोपजीव्येषि
विषधरती०
विषपाषाण●
3399
3420
3592
5.12
विषमा मलि०
विषमा हरिणा गौरा
विषयद्वानि०
विषयेष्वपि कष्टो
विषहीनो यथा नागो.
विष्टावमिश्वास
विष्णुकान्ता च
विष्णुनाणक्षयो
विसंस्थुलावेश ०
विस्तीर्णो दीर्घ
विस्वरं विरसं
विहरन्ति जगत्ये के
विहाय पौरुषं..
वीणावंशा०
वीरोसी किमु०
वृकव्याघ्रतरतॄ०.
वृक्षं क्षीणफलं
वृक्षस्याशनि ०.
वृक्षमूर्ध्नि यथा..
वृक्षांछित्त्वा महाँ.
वृक्षान्दोलनमद्य
582
28-18
3586
वृत्तार्क सूत्र०
वृथा वृष्टिः समुद्रेषु
1713
1469
वृद्धकर्पास०
वृद्धदारुकमूलं
वृद्धिर्यस्य
।वृद्धोन्वः पति ०
2413
4251
1614
वृश्चिककण्टक
०
2339 वृश्चिको वस्तुमध्ये.
2442
1838
वृक्षायुर्वेद फलं
वृक्षस्यका शाखा
वृषणौ च समौ वृत्ती.
वेगज्वलाद्वटप
वेगादुत्सुक्रमांगते..
वेगो रोमाञ्च०
देणीवन्धकपर्दिनी..
वेणी विडम्बयति
वेदवेदाङ्ग ०
वेदानुद्धरते
वेदार्थशास्त्रकाव्यार्था
722
800
349
2117
353
2746
4391
4190
1364
2400
1888
4277
3173
1034
1961
4341
456
325
3991
2962
1543
2268
4481
639
1216
2276
2203
1767
1454
2948
2080
986
-110
2241
2541
1630
869
3539
2894
3168
3378
1333
80
4524
दिनतः पूर्वकाग्रेन
विना मह्यं विना
विना शार्ङ्गधरं
विनैवाम्भोवाहं.
विन्ध्यमन्दर ०
विन्ध्याद्रिः करिसाधने
विपत्यशान्ये
विपदि वैर्य ०
विपन्नं पद्मिन्या
विधुलकुचा वृथु०
विपुलहदया०.
विप्रेभ्यो दक्षिणां
विभागेन समाना०
विमर्शक: शाकुन ०
विमुञ्चन्त्या प्राणा
वियत्पुच्छाच्छोटो०
विरमत घनाः किं
विरमत विरमत मुख्यो
विरम तिमिर
विरम नाथ विमुञ्च.
विरलविरलीभूना•
विरहविषमः कामी
विराजतेस्यास्तिलको
विरामान्तं हु.
विलपति तथा.
विलम्बिनो यत्र
विलासमसृणो
विलिप्तं मधुना चित्रं
विलोक्य संगमे
विकसदसित ०
विवादो धनसं०
विवाहार्ये शुभः
विविक्तः शान्त ०.
विवेकी सघृणो विप्र०
विशदः शम्भुत्येिते.
विशन्नस्थिमुखो
विशाखस्थानके
विशिष्ट कविशंसा
विशुद्धिः कण्टं
विशोधय मही●
विश्रम्य विश्रम्य वन ०
विश्रान्तो दिवस
विश्लेषाकुल:
विश्वस्य हेतु०.
शार्ङ्गधरपद्धतिः
1708 विश्वासहन्ना
4045
1715
3520
1064
1264
1091
209
981
3102
149
1880
1490
2329
3492
82
3898
3432
763
3675
3718
3572
3295
2005
780
2168
15
4299
1350
विश्वोपजीव्येषि
विषधरती०
विषपाषाण●
3399
3420
3592
5.12
विषमा मलि०
विषमा हरिणा गौरा
विषयद्वानि०
विषयेष्वपि कष्टो
विषहीनो यथा नागो.
विष्टावमिश्वास
विष्णुकान्ता च
विष्णुनाणक्षयो
विसंस्थुलावेश ०
विस्तीर्णो दीर्घ
विस्वरं विरसं
विहरन्ति जगत्ये के
विहाय पौरुषं..
वीणावंशा०
वीरोसी किमु०
वृकव्याघ्रतरतॄ०.
वृक्षं क्षीणफलं
वृक्षस्याशनि ०.
वृक्षमूर्ध्नि यथा..
वृक्षांछित्त्वा महाँ.
वृक्षान्दोलनमद्य
582
28-18
3586
वृत्तार्क सूत्र०
वृथा वृष्टिः समुद्रेषु
1713
1469
वृद्धकर्पास०
वृद्धदारुकमूलं
वृद्धिर्यस्य
।वृद्धोन्वः पति ०
2413
4251
1614
वृश्चिककण्टक
०
2339 वृश्चिको वस्तुमध्ये.
2442
1838
वृक्षायुर्वेद फलं
वृक्षस्यका शाखा
वृषणौ च समौ वृत्ती.
वेगज्वलाद्वटप
वेगादुत्सुक्रमांगते..
वेगो रोमाञ्च०
देणीवन्धकपर्दिनी..
वेणी विडम्बयति
वेदवेदाङ्ग ०
वेदानुद्धरते
वेदार्थशास्त्रकाव्यार्था
722
800
349
2117
353
2746
4391
4190
1364
2400
1888
4277
3173
1034
1961
4341
456
325
3991
2962
1543
2268
4481
639
1216
2276
2203
1767
1454
2948
2080
986
-110
2241
2541
1630
869
3539
2894
3168
3378
1333
80
4524