शार्ङ्गधरपद्धतिः /750
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पायात्पयोधि०
पार्वती तोषिता
पार्श्वस्फलिा...
पार्श्वभ्यां स०.
पाणि तु वाम०
तु
पाणि तु वाम
पाणिभ्यां लिङ्ग ०
पालने वालकष्टाय
पाश्चात्यभाग ०....
पाश्चात्यैर्मरु मारुतै ●
पाषाणखण्डेष्वपि
ङ्गला कुररः सर्पः
पिङ्गलाफेरुजम्बुक्यो
पिङ्गलाय धरानीर०
पिङ्गलायां यदा
पिङ्गलायामिडाय..
पिङ्गला वामनिनदा
पिङ्गलेडापर्यं
पिचुमन्दनागकुसुमै •
पिण्डं मज्जासु
पितृमातृ विनाशाय
विदधति तिमिरे
विधाय कर्णौ च
पिनाकफणिबालेन्दु ०.
पिपि प्रिय सस०
पिप्पलीमाष●●
पिप्पली सैन्धवं
पिबतस्ते शरा
पिबति प्रसूति ०
पिब पयः प्रसर
पिशुनात्तस्करा०
पिष्ट गृहीत च
पिष्टाः क्षीराबु..
पिष्टान्नमशुभं सर्व
पीठीप्रक्षालनेन
पीतं नीलं तथा
पीतं यत्र हिमं..
पीततुषारकिरणो
पीते च तिलकषाये
पीत्वा सुधाकर
पीना कटि: सुवृत्त ०
पीनोपयोधराः
पीयूषं वपुषोस्य
पीलूनां फलव ०
....
श्लोकानुक्रमणिका
2100
587
3505
4408
4487
134 पुंप्रकृत्योः कथ
पुंसः संबोधनं
पुंसी सुखैक ०.
पुंसो निजमनो●
पुस्कोकिलमधुरो०
पुजीभूतं प्रेम..
पुच्छे जानुनि कक्षाय
पुटदग्धपद्मिनी●
4433
2506
4022 पुण्यानी पूर्ण..
पुण्ये ग्रामे.
पुत्र मिचकलत्रेषु
3831
4099
4615
2550
पुनः कृत्वाद्भुतं..
पुनः पिङ्गलया
पुनःपुनर्दक्षिण ०
2814
2812
पुनः शर्करया.
2815
पुनः सृष्टि: पु०
2654 पुनर्नवाजा ०.
4319
पुरंदरहरिहरी०
पुरंदरसहस्राणि
2318
4293
पुरः स्थित्वा
2741 पुरमेकं जगति
पुरस्तादुच्छ्रतश्चापि
3601
4580
63
3651
पुराणबाणत्यागाय.
पुराभूदस्माकं.
पुरा शाकंभरी ०.
पुरा सपक्षा हरयो
पुरा स्वर्गे सुखे.
3216
1783
2995
538 पुरो नुन्नः
पुलकाङ्कित
पुष्पं प्रवालोपहितं..
1211
3021
पुष्पगन्धः सदा
2998
पुष्पवद्धार ये ०.
2269
पुष्पसाधारणे
पुष्पेषोर भिषेक ●
4028 पुषैरपि न योद्धव्यं
2575
4656
पुष्यार्के मूला
921 पुष्यास्पोटिते
3648 पुष्येपराजिता ●
3236
पूरणात्पूर कं
4606
पूरणय विभि०
1629 पूर्णग्रन्थि सुपक्कं
3939 पूर्णानना समृद्ध्यै
पूर्णे शतसहस्त्रे.
761
956 पूर्व गृहीत्वा व्यापारं
७३५
4182
552
2082
4207
3093
71
1664
3229
3946
254
4089
689
4459
2404
1874
4269
3045
3633
4163
3517
4228
1579
3304
3558
2
1598
1561
588
1670
3318
1613
1835
2048
3337.
1298
2982
1893
2983
4380
2074
1769
2547
3985
2743
पार्वती तोषिता
पार्श्वस्फलिा...
पार्श्वभ्यां स०.
पाणि तु वाम०
तु
पाणि तु वाम
पाणिभ्यां लिङ्ग ०
पालने वालकष्टाय
पाश्चात्यभाग ०....
पाश्चात्यैर्मरु मारुतै ●
पाषाणखण्डेष्वपि
ङ्गला कुररः सर्पः
पिङ्गलाफेरुजम्बुक्यो
पिङ्गलाय धरानीर०
पिङ्गलायां यदा
पिङ्गलायामिडाय..
पिङ्गला वामनिनदा
पिङ्गलेडापर्यं
पिचुमन्दनागकुसुमै •
पिण्डं मज्जासु
पितृमातृ विनाशाय
विदधति तिमिरे
विधाय कर्णौ च
पिनाकफणिबालेन्दु ०.
पिपि प्रिय सस०
पिप्पलीमाष●●
पिप्पली सैन्धवं
पिबतस्ते शरा
पिबति प्रसूति ०
पिब पयः प्रसर
पिशुनात्तस्करा०
पिष्ट गृहीत च
पिष्टाः क्षीराबु..
पिष्टान्नमशुभं सर्व
पीठीप्रक्षालनेन
पीतं नीलं तथा
पीतं यत्र हिमं..
पीततुषारकिरणो
पीते च तिलकषाये
पीत्वा सुधाकर
पीना कटि: सुवृत्त ०
पीनोपयोधराः
पीयूषं वपुषोस्य
पीलूनां फलव ०
....
श्लोकानुक्रमणिका
2100
587
3505
4408
4487
134 पुंप्रकृत्योः कथ
पुंसः संबोधनं
पुंसी सुखैक ०.
पुंसो निजमनो●
पुस्कोकिलमधुरो०
पुजीभूतं प्रेम..
पुच्छे जानुनि कक्षाय
पुटदग्धपद्मिनी●
4433
2506
4022 पुण्यानी पूर्ण..
पुण्ये ग्रामे.
पुत्र मिचकलत्रेषु
3831
4099
4615
2550
पुनः कृत्वाद्भुतं..
पुनः पिङ्गलया
पुनःपुनर्दक्षिण ०
2814
2812
पुनः शर्करया.
2815
पुनः सृष्टि: पु०
2654 पुनर्नवाजा ०.
4319
पुरंदरहरिहरी०
पुरंदरसहस्राणि
2318
4293
पुरः स्थित्वा
2741 पुरमेकं जगति
पुरस्तादुच्छ्रतश्चापि
3601
4580
63
3651
पुराणबाणत्यागाय.
पुराभूदस्माकं.
पुरा शाकंभरी ०.
पुरा सपक्षा हरयो
पुरा स्वर्गे सुखे.
3216
1783
2995
538 पुरो नुन्नः
पुलकाङ्कित
पुष्पं प्रवालोपहितं..
1211
3021
पुष्पगन्धः सदा
2998
पुष्पवद्धार ये ०.
2269
पुष्पसाधारणे
पुष्पेषोर भिषेक ●
4028 पुषैरपि न योद्धव्यं
2575
4656
पुष्यार्के मूला
921 पुष्यास्पोटिते
3648 पुष्येपराजिता ●
3236
पूरणात्पूर कं
4606
पूरणय विभि०
1629 पूर्णग्रन्थि सुपक्कं
3939 पूर्णानना समृद्ध्यै
पूर्णे शतसहस्त्रे.
761
956 पूर्व गृहीत्वा व्यापारं
७३५
4182
552
2082
4207
3093
71
1664
3229
3946
254
4089
689
4459
2404
1874
4269
3045
3633
4163
3517
4228
1579
3304
3558
2
1598
1561
588
1670
3318
1613
1835
2048
3337.
1298
2982
1893
2983
4380
2074
1769
2547
3985
2743