शार्ङ्गधरपद्धतिः /733
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७१८
कूर्मो मूलवदालवाल •
कूष्माण्डवार्ताक●
कूष्माण्डीफलवन्●
कृच्छ्र।च्चाप्यायते
कृच्छेण कापि.
कृतक कृतकै ●
कृतज्ञ एह्येहि
कृते पापेनु०
कृते युगे महा....
कृतोपकारं प्रिय०
कृतोपवास:
कृत्तिकाभर ०.
कृत्वापि कोशपानं..
.........
कृत्वा च सप्तखण्डं
कृत्वापि पातकं
कृत्वा रवं यः पुरतः
कृत्वा विग्रह....
कृत्वा शिरो द्वारि
कृपणसमृ०
कृपणेन मृतेना०
कृपणेन समो
कृमयो भस्म विष्ठा
कृमिरियवयष्टी
कृशा केनासि त्वं..
कृशास त्यालीना
कृशो दीघों लघु०
कृष्णं तालु भवेद्यस्य
कृष्णं वाहतु.
कृष्ण तित्तिरिरितीह
कृष्ण त्वं घन०
कृष्ण त्वं नवयौवनोसि
कृष्णद्वैपायना दी●
कृष्णभूमिसु०
कृष्णशिरोरुह ०
कृष्णा कसेरु •
कृष्णार्जुनानुरक्तापि
कृष्णेनाम् गतेन
कृष्णोरुणो वा..
कृष्णो वाजी भवेयः
कृष्यारम्भादेने
केका कर्णामृतं
केकानिनाद ०.
के गृह्णन्ति कत्रों •
केनित्प्रथमजन्मानः
शार्ङ्गधरपद्धतिः
2298
129 । केचिदज्ञान नो...
केतकीकुसुमं
केतकीपचकुष्ठैला ●
1022
1592
केतकीपचसदृशं
3524
केदारगाहसमये
3560
2345
714
1747
3589
1730
2897
835
3243
676
2660
3716
2429
383
338 के शोल्लुच्चन ०
386
4141
2308
3531
35 32
2258
1659
886
2729
1239
130
4350
4641
2823
2968
3655
4016
3117
1647
2516
केदारपाल्यां गेहे.
के मास्ते क
केनापि चम्पकतरो
केनासीनः सुख●
केपि स्वभाव
के भूषयन्ति
केलि कुरुष्व्
केवले कुम्भके
केशवं पनितं दृष्ट्वा
के शस्त नादि०
केशा: कालालि ●
के शानाकुलयन्
केश इमभस्मोल्मुक०
केशे: केसर मालिका ०
868
2167
3192
4340
केसरं च जटाहीनं ...
कैलासायित मद्रिभि०
कैशिक: केशमूले
कोकिल कल०
कोकिलश्चत शिखरे
कोकिला प्रिय
को व्यस्त्रयोदश
कोदण्डद्वयमध्य ०.
कोपार्टिकचिदु
कोपो यत्र कुटि०
कोप्यन्यः कल्पवृक्षोयं
कोप्येष खण्डित ०.
कोयं द्वारि हरिः
कोयं भ्रान्ति प्रकार०.....
कोर्यान्प्राप्य न
कोलशोणित मे दो ०
कोशः स्फीततरः.
कोशातकीदल ●
कोहं को देशकाली
कोहं ब्रूहि स
को हि तुलामधि •
कौपं वारि.
कोपे पयसि
कीमें संकोच ●
1437
822
3007
4638
2521
2519
3184
1003
1110
430
553
920
4385
527
3181
3067
3944
2623
3458
4060
1624
3641
1804
841
3784
2031
1916
4362
3567
3562
1222
3976
122
794
1534
2303
3322
2238
1404
4010
1196
933
932
1305
कूर्मो मूलवदालवाल •
कूष्माण्डवार्ताक●
कूष्माण्डीफलवन्●
कृच्छ्र।च्चाप्यायते
कृच्छेण कापि.
कृतक कृतकै ●
कृतज्ञ एह्येहि
कृते पापेनु०
कृते युगे महा....
कृतोपकारं प्रिय०
कृतोपवास:
कृत्तिकाभर ०.
कृत्वापि कोशपानं..
.........
कृत्वा च सप्तखण्डं
कृत्वापि पातकं
कृत्वा रवं यः पुरतः
कृत्वा विग्रह....
कृत्वा शिरो द्वारि
कृपणसमृ०
कृपणेन मृतेना०
कृपणेन समो
कृमयो भस्म विष्ठा
कृमिरियवयष्टी
कृशा केनासि त्वं..
कृशास त्यालीना
कृशो दीघों लघु०
कृष्णं तालु भवेद्यस्य
कृष्णं वाहतु.
कृष्ण तित्तिरिरितीह
कृष्ण त्वं घन०
कृष्ण त्वं नवयौवनोसि
कृष्णद्वैपायना दी●
कृष्णभूमिसु०
कृष्णशिरोरुह ०
कृष्णा कसेरु •
कृष्णार्जुनानुरक्तापि
कृष्णेनाम् गतेन
कृष्णोरुणो वा..
कृष्णो वाजी भवेयः
कृष्यारम्भादेने
केका कर्णामृतं
केकानिनाद ०.
के गृह्णन्ति कत्रों •
केनित्प्रथमजन्मानः
शार्ङ्गधरपद्धतिः
2298
129 । केचिदज्ञान नो...
केतकीकुसुमं
केतकीपचकुष्ठैला ●
1022
1592
केतकीपचसदृशं
3524
केदारगाहसमये
3560
2345
714
1747
3589
1730
2897
835
3243
676
2660
3716
2429
383
338 के शोल्लुच्चन ०
386
4141
2308
3531
35 32
2258
1659
886
2729
1239
130
4350
4641
2823
2968
3655
4016
3117
1647
2516
केदारपाल्यां गेहे.
के मास्ते क
केनापि चम्पकतरो
केनासीनः सुख●
केपि स्वभाव
के भूषयन्ति
केलि कुरुष्व्
केवले कुम्भके
केशवं पनितं दृष्ट्वा
के शस्त नादि०
केशा: कालालि ●
के शानाकुलयन्
केश इमभस्मोल्मुक०
केशे: केसर मालिका ०
868
2167
3192
4340
केसरं च जटाहीनं ...
कैलासायित मद्रिभि०
कैशिक: केशमूले
कोकिल कल०
कोकिलश्चत शिखरे
कोकिला प्रिय
को व्यस्त्रयोदश
कोदण्डद्वयमध्य ०.
कोपार्टिकचिदु
कोपो यत्र कुटि०
कोप्यन्यः कल्पवृक्षोयं
कोप्येष खण्डित ०.
कोयं द्वारि हरिः
कोयं भ्रान्ति प्रकार०.....
कोर्यान्प्राप्य न
कोलशोणित मे दो ०
कोशः स्फीततरः.
कोशातकीदल ●
कोहं को देशकाली
कोहं ब्रूहि स
को हि तुलामधि •
कौपं वारि.
कोपे पयसि
कीमें संकोच ●
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822
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4638
2521
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553
920
4385
527
3181
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2623
3458
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1624
3641
1804
841
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1916
4362
3567
3562
1222
3976
122
794
1534
2303
3322
2238
1404
4010
1196
933
932
1305