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•सर्वशाखाप्रत्ययं
 
सर्वांधारा मही यस्मात्
सहस्त्रकमले शक्तिः
साधु साधु महाभागे
 
सिद्धमन्नं परित्यज्य
 
सिद्धिस्त्वनन्य
चित्तत्वं
 
सुखाद दुःख
 
सुता सुन्वती
 
सुत्रामाणं पृथिवीं
सूते जगन्ति भवती
 
सूर्याचन्द्रौ स्तनौ
सूर्यमण्डलमध्यस्थां
 
"
 
सोमसूर्यानलात्मकं
 
स्त्रियां: पुंवत्
 
>>
 
अथर्वणवेदः
 
अथवंशिरः
 
अभिधानम्
 
अमरः
 
अनुक्रमणिका
 
पं.
 
724 10
 
18
 
9
 
24 20
 
50
 

 
स्पष्टा पश्यन्स्याख्या
 
स्पृहेरीप्सितः
 
स्वरस्थ गमकः कम्पः
 
1 स्वात्मैव देवता प्रोक्ता
स्वाधिष्ठाने संहारः
 
स्वार्थिकाः प्रत्ययाः
 
26 8
 
284 3
 
36 11
 
91
 
17
 
114 18 हन्त हर्षेऽनुकम्पायां
174 7 हरनिर्माल्यं परित्याज्यं
 
101 9 हलन्तादपि टाबिष्यते
 
69 19
122 8
 
हिंसास्तेयान् यथाकामं
हिरण्यवर्णा हरिणीं
 
82 7 हिसिधातोः सिंह
 
61 11
9
 
होमो विश्वविकल्पानां
हीच ते लक्ष्मीश्च
 
(५) उद्धृतग्रन्थनाम्नामकाराद्यनुक्रमणिका
 
200
 
पं.
 
अमरशेषः
अरुणोपनिषत्
 
289 21
 
289 20
 
12 19 अश्वमेघकाण्डम्
 
42
 
6
 
26
 
35 7, 161 8, 165
 

 
1
 
2 आगमरहस्यम्
 
D
 
34 18, 34 20,
 
३६७
 
पं.
 
पु.
102 12
 

 
178 11
 
157 13
 
283 4
 
198 14
 
8 11
 
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161 7
 
153 4
 
67 20
 
140 14
 
40 15
 
88
 
286 18
 
191 8
 
113 12, 113 17
90 22
 
5 3
 
34 17
 
95 3
 
3 7