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यत् षट्चक्रं
यस्सयोवचसां
 
यन्नित्ये तव
 
यस्त्वां ध्यायति वेत्ति
 
यस्मिन् मनागपि
 
याचे न कंचन
 
या मात्रा पुसी
 
यामामनन्ति मुनयः
 
बाबरपदं पदसरोज
 
ये चिन्तयन्ति
 
ये त्वां पाण्डुर
 
ये देवि दुर्धर
ये भावयन्त्यमृत
 
ये संस्मरन्ति
 
ये सिन्दूरपराग
 
योऽयं चकास्ति
 
रुद्राणि विद्रुममयीं
रूपं तव स्फुरित
रे मूढाः किमयं
 

 
लक्ष्मीवशीकरणचूर्ण
लक्ष्मीवशीकरणकर्म
 
लक्ष्मी राजकुले
 
लाक्षारसस्नपित
 
लठद्गुआहार
 
सौन्दर्यलहरी
 
श्लो. पु.
 
37 315
 
5 291 वक्त्रे यदुद्यतं
 
4
 
291
 
वचस्तर्कागम्य
 
15
 
302
 
5 295
 
20 303
 
2
 
291
 
303
 
वामे पुस्तकधारिणीं
 
विद्यां परां कतिचि
 
विधुः विष्णुः ब्रह्मा
 
विधे वेद्य विद्ये
 
1
 
27 307
 
19 297
 
8
 
292
 
17 302
 
13 305
 
10
 
301
 
9 292 शक्तिश्शरीरं
 
15 297
 
18 302
 
9 296
 
17 293
 
11 301
 
5 309
 
विधेर्मुण्डं ह्रस्वा
विप्राः क्षोणिभुजः
 
विरिंच्याख्या मातः
 
विश्वव्यापनि यद्वत्
 
व्योमेति बिन्दुरिति
 
शब्दानां जननी
 
शरीरं क्षित्यम्भः
 
शर्वाणि सर्वजन
 
26 299 शिवस्त्वं शक्तित्वं
 
शुनां वा वव
 
12 296
 
19 302
 
षडभ्वारण्यान
बढाधारावतें:
 

 

 

 
संकोचमिच्छसि यदा .
 
सावधं निरवयं
 
सिन्दूरपसुटल
 
CC-0. Jangamwadi Math Collection. Digitized by eGangotri
 
श्लो. पु.
 
5 304
 
2 309
 
7 292
 
31 308
 
33 314
 
21 312
 
22 312
 
14 293
 
23 312
 
7 301
 
3 303
 
25 307
 
15 293
 
26 313
 
21 298
 
34 314
 
7 310
 
11 310
15 311
 
22 307
 
21 294
 
13 296