This page has not been fully proofread.

त्वदीयं सौन्दर्य
 
स्वया हृत्वा
 
दुदाने दीनेभ्यः
 
दृशा द्वाघीयस्या
 
धनुः पौष्पं
 
धुनोतु ध्वान्तं नः
 
नखानामुयोतैः
 
नखैनांकस्त्रीणां
 
नमोवाकं ब्रूमः
 
नरं वर्षीयांसं
 
निधे नित्यस्मेरे
 
निमेषोन्मेषाभ्यां
 
निसर्गक्षीणस्य
 
पदं ते कीतींनां
 
पदन्यासक्रीडा
 
पराजेतुं रुद्रं
 
पवित्रीकर्तु नः
 
पुरारातेरन्तःपुरं
 
प्रकृत्या रक्तायाः
प्रदीपज्वालाभिः
 

 

 

 

 
सौन्दर्यलहरी
 
श्लो. पु.
 
12 44
 
23 64
 
in
 
90 183
 
57 144
 
मनस्त्वं व्योम त्वं
महीं मूलाधारे
मुख बिन्दुं कृत्वा
126 मृणाळीमुद्दीनां
 
मृषाकृत्वा गोत्र
 
6 12
 
भवानि त्वं दासे
भुजाश्लेषात्
भुवौ भुंग्ने
 
43 126
 
71 160
 
89 182 यदेतत् काळिन्दी
 
85 177
 
13 45
 
100 263 रणे जित्वा दैत्यान्
 
55 142
 
79 169
 
ललाटं लावण्य
 
88 181
 
91 184 वहत्यम्ब स्तम्बेरम
 
83 175 विपञ्जया गायन्ती
 
54
 
141
 
विभक्तत्रैवर्ण्य
 
95 188 विरिचिः पञ्चत्वं
 
62 149 विशाला कल्याणी
100 201 विशुद्धौ ते
 

 

 

 

 

 
CC-0. Jangamwadi Math Collection. Digitized by eGangotri
 
पु
 
22 63
 
68
 
156
 
47 131
 
35 105
 
9
 
18
 
19
 
58
 
70 159
 
86 179
 
77 167
 
65 -152
 
46 129
 
74 164
 
66 154
 
53 139
 
26 67
 
49 134
 
37- 108