This page has not been fully proofread.

७२
 
पूर्वगगन-
जीर्णतिमिर-
नूतनकररञ्जितम् ।
 
त्यजत कमल-
जाटत ननु
 
व्रजत,
 
मम्बुदलववर्जितम् ॥ १ ॥
 
तल्पशयन सेवनम् ।
 
शृणुत मुरज-
संस्कृतसन्दर्भ:
 
उद्योधनम्
 
पश्यत पुर
 
मम्बरपथ मुत्थितम् ।
 
मेतु नयनमुद्रणम् ॥ २ ॥
 
गच्छत, निज-
मुद्यदरुण-
जालरुचिर-
गायत शशि-
जागृत लय-
कोमलतल-
भ्रतर इह
 
वैभवगुणमद्भुतम् ॥ ३ ॥
 
मङ्गलमयगीतिकाम्
 
मन्द्रनिनद-
वहत
 
भारमुपरि निर्भरम्
 

 
कर्मसरणि-
उद्यमबल-
माश्रयत च सत्वरम् ॥ ४ ॥
 
कृत्यनिवह-
शेखरजय-

 
मधुसुमधुर-
मम्बरतलपूरिकाम् ॥ ५ ॥
 
परिशिष्टम्
 
लमतु विमल-
शान्तसकलविश्लवम् ।
 
भुवनविदित- 1
 
शान्तिसलिल-
वृन्दममितवैभवम् ॥ ६ ॥
 
भारती
 
भारति धारय धारय वादय
 
वादय मधुरसमधुरां वीणाम् । ध्रुवपदम्
 
श्रवणं तोषय
 
हृदयं मोहय
 
जनय जनानां
 
भारतसुत-
तर्पय भारतभुवमतिदीनाम् ।
 
अतिशयविमलं
 
मतिमिह कामपि कुशलनिदानाम् ॥ १ ॥
 
तव पदकमलं
 
गायतु भुवनं
 
सरसनवीनां
 
भगवति, विलसतु मनसि निकामम् ।
 
ननु तव नयनं
 
जननि, मकरुणं
 
तिरयतु मानसमलमविरामम्
 
म् ॥ २ ॥
 
तव महिमानं
 
महितमनिन्दितममितमुदारम् ।
 
Digitised by Ajit Gargeshwari For Karnataka Samskrita University
 
७३
 
अशरणशरणं
 
यातु च निर्मलमोदमपारम् ॥ ३ ॥
 
भजतु च चरणं