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रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन् ।
नये न लिप्यते पापैर्मुक्ति मुक्ति च विन्दति ॥१२॥
'राम', 'रामभद्र', 'रामचन्द्र-इन नामोंका स्मरण
करनेसे मनुष्य पापोंसे लिप्त नहीं होता तथा भोग
और मोक्ष प्राप्त कर लेता है ॥ १२ ॥
जगज्जैत्रैकमन्त्रेण
 
रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥१३॥
 
जो पुरुष जगत्को विजय करनेवाले एकमात्र
मन्त्र रामनामसे सुरक्षित इस स्तोत्रको कण्ठ में धारण
करता है ( अर्थात् इसे कण्ठस्थ कर लेता है), सम्पूर्ण
सिद्धियाँ उसके हस्तगत हो जाती हैं ॥ १३ ॥
वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमङ्गलम् ॥ १४॥
 
जो मनुष्य वज्रपञ्जर नामक इस रामकवचका स्मरण
करता है, उसकी आज्ञाका कहीं उल्लङ्घन नहीं होता और
उसे सर्वत्र जय और मङ्गलकी प्राप्ति होती है ॥१४॥
 
CC-0. Mumukshu Bhawan Varanasi Collection. Digitized by eGangotr