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रामरक्षास्तोत्रम्
 
§
 
• जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तकः ।
पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं
 
वपुः ॥ ९ ॥
जानुओंकी सेतुकृत, जङ्घाओंकी दशमुखान्तक
(रावणको मारनेवाले), चरणोंकी विभीषणश्रीद
( विभीषणको ऐश्वर्य प्रदान करनेवाले ) और सम्पूर्ण
शरीरकी श्रीराम रक्षा करें ॥ ९ ॥
 
एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत् ।
सचिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥
जो पुण्यवान् पुरुष रामवलसे सम्पन्न इस रक्षाका
पाठ करता है, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान्, विजयी
और विनयसम्पन्न हो जाता है ॥ १० ॥
पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः
न द्रष्टुमपि शकास्ते रक्षितं रामनामभिः ॥११॥
जो जीव पाताल, पृथ्वी अथवा आकाश में विचरते
हैं और जो छद्मवेशसे घूमते रहते हैं, वे रामनामोंसे
सुरक्षित पुरुषको देख भी नहीं सकते ॥ ११ ॥
 

 
CC-0. Mumukshu Bhawan Varanasi Collection. Digitized by eGangotr