This page has not been fully proofread.

रामरक्षास्तोत्रम्
 
जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः ।
स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥ ६ ॥
 
मेरी जिह्वाकी विद्यानिधि, कण्ठकी भरतवन्दित,
कंधोंकी दिव्यायुव और भुजाओंकी भग्नेशकार्मुक
( महादेवजीका धनुष तोड़नेवाले ) रक्षा करें ॥ ६ ॥
करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभि जाम्बवदाश्रयः ॥ ७ ॥
 
हाथोंकी सीतापति, हृदयकी जामदग्न्यजित्
( परशुरामजीको जीतनेवाले ), मध्यभागकी खरध्वंसी
( खर नाम राक्षसका नाश करनेवाले ) और नाभिकी
जाम्बवदाश्रय (जाम्बवान् के आश्रयस्वरूप) रक्षा करें ॥७॥
सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः ।
ऊरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत् ॥ ८॥
कमरकी सुग्रीवेश ( सुग्रीव के स्वामी ), सक्थियोंकी
हनुमत्प्रभु और ऊरुओंकी राक्षसकुल-विनाशक रघुश्रेष्ठ
रक्षा करें ॥ ८ ॥
 
CC-0. Mumukshu Bhawan Varanasi Collection. Digitized by eGangotr