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रामरक्षास्तोत्रम्
 
रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राधवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥ ४ ॥
 
जो नीलकमल के समान श्यामवर्ण, कमल-नयन,
जटाओंके मुकुसे सुशोभित, हाथोंमें खड्ग, तूणीर, धनुष
और बाण धारण करनेवाले, राक्षसों के संहारकारी तथा
संसारकी रक्षा के लिये अपनी लीलासे ही अवतीर्ण हुए
हैं, उन अजन्मा और सर्वव्यापक भगवान् रामका जानकी
और लक्ष्मणजीके सहित स्मरण कर प्राज्ञ पुरुष इस
सर्वकामप्रदा और पापविनाशिनी रामरक्षाका पाठ करे ।
मेरे सिरकी राघव और ललाटकी दशरथात्मज रक्षा
करें ॥ २-४ ॥
 
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ॥ ५ ॥

कौसल्यानन्दन नेत्रोंकी रक्षा करें, विश्वामित्रप्रिय
कानोंको सुरक्षित रक्खें तथा यज्ञरक्षक घ्राणकी और
सौमित्रिवत्सल मुखकी रक्षा करें ॥ ५ ॥
 
CC-0. Mumukshu Bhawan Varanasi Collection. Digitized by eGangotr