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रामरक्षास्तोत्रम्
 
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहं
रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥
 
राजाओं में श्रेष्ठ श्रीरामजी सदा विजयको प्राप्त होते
हैं। मैं लक्ष्मीपति भगवान् रामका भजन करता हूँ। जिन
रामचन्द्र जीने सम्पूर्ण राक्षससेनाका ध्वंस कर दिया था,
मैं उनको प्रणाम करता हूँ । रामसे बड़ा और कोई
आश्रय नहीं है। मैं उन रामचन्द्रजीका दास हूँ। मेरा
चित्त सदा राममें ही लीन रहे; हे राम ! आप मेरा
उद्धार कीजिये ॥ ३७ ॥
 
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥
( श्रीमहादेवजी पार्वतीजीसे कहते हैं—) हे
सुमुखि ! रामनाम त्रिष्णुसहस्रनामके तुल्य है। मैं सर्वदा
'राम, राम, राम' इस प्रकार मनोरम रामनाममें ही
रमण करता हूँ ॥ ३८ ॥
 
इति श्रीवुधकौशिकमुनिविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
 
CC-0. Mumukshu Bhawan Varanasi Collection. Digitized by eGangotr