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२६ रामरक्षास्तोत्रम्
 

 
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहं

रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥
 

 
राजाओं में श्रेष्ठ श्रीरामजी सदा विजयको प्राप्त होते

हैं। मैं लक्ष्मीपति भगवान् रामका भजन करता हूँ। जिन

रामचन्द्र जीने सम्पूर्ण राक्षससेनाका ध्वंस कर दिया था,

मैं उनको प्रणाम करता हूँ । रामसे बड़ा और कोई

आश्रय नहीं है। मैं उन रामचन्द्रजीका दास हूँ। मेरा

चित्त सदा राममें ही लीन रहे; हे राम ! आप मेरा

उद्धार कीजिये ॥ ३७ ॥
 

 
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।

सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥

 
( श्रीमहादेवजी पार्वतीजीसे कहते हैं—) हे

सुमुखि ! रामनाम त्रिविष्णुसहस्रनामके तुल्य है। मैं सर्वदा

'राम, राम, राम' इस प्रकार मनोरम रामनाममें ही

रमण करता हूँ ॥ ३८ ॥
 

 
इति श्रीवुबुधकौशिकमुनिविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
 

 
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