2023-02-22 08:47:43 by Jayashree
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रामरक्षास्तोत्रम्
लोकाभिरामं
राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं
श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥
जो सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रणक्रीडामें धीर, कमलनयन,
रघुवंशनायक, करुणामूर्ति और करुणाके भण्डार हैं, उन
श्रीरामचन्द्रजीकी मैं शरण लेता हूँ ॥ ३२ ॥
मनोजवं
राजीवनेत्र
कारुण्यरूपं
रामरक्षास्तोत्रम्
वातात्मजं
करुणाकरं तं
जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं
श्रीरामदूतं शरणं
जिनकी मनके समान गति और वायुके समान वेग है,
जो परम जितेन्द्रिय और बुद्धिमानोंमें श्रेष्ठ हैं, उन प
वानराग्रगण्य श्रीरामदूतकी मैं शरण लेता हूँ ॥ ३३ ॥
क्रू
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम् ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥ ३४॥
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