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रामरक्षास्तोत्रम्
 
लोकाभिरामं
 
रणरङ्गधी
रं
राजीवनेत्रं
रघुवंशनाथम् ।
 

कारुण्यरूपं करुणाकरं तं
श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥

 
जो सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रणक्रीडामें धीर, कमलनयन,

रघुवंशनायक, करुणामूर्ति और करुणाके भण्डार हैं, उन
 

श्रीरामचन्द्रजीकी मैं शरण लेता हूँ ॥ ३२ ॥
 

 
मनोजवं
 
राजीवनेत्र
 
कारुण्यरूपं
 
रामरक्षास्तोत्रम्
 
वातात्मजं
 
करुणाकरं तं
 
मारुततुल्यवेगं

जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
 

वातात्मजं
वानरयूथमुख्यं
 

श्रीरामदूतं शरणं
 
प्रपद्ये ॥ ३३ ॥
 

 
जिनकी मनके समान गति और वायुके समान वेग है,

जो परम जितेन्द्रिय और बुद्धिमानोंमें श्रेष्ठ हैं, उन पत्रननन्दन

वानराग्रगण्य श्रीरामदूतकी मैं शरण लेता हूँ ॥ ३३ ॥
क्रू

 
कू
जन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम् ।

आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥ ३४॥

 
CC-0. Mumukshu Bhawan Varanasi Collection. Digitized by eGangotr