2023-02-21 15:33:10 by ambuda-bot
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रक्खीं थीं । इन प्रतियोंके पाठोंको मी हमने कहीं कहीं संगृहीत किया है और उनका क्रमानुसार Da. Db. De. Dd.
इत्यादि अक्षरोंसे निर्देश किया है ।
(६) P& पाटणके संघके भण्डारकी [ डिब्बा नं. ५०, प्रति नं. ८ ] एक प्रति जिसमें सिर्फ प्रबन्धचिन्तामणिगत
'मुंजभोजप्रबंध' लिखा हुआ है । वास्तवमें यह प्रति है तो राजशेखरसूरिरचित 'प्रबन्धकोष' की, लेकिन इसके अन्तमें
प्रबन्धचिन्तामणिका उक्त प्रबन्ध भी लिखा हुआ है । इस प्रतिकी कुल पत्र संख्या १०५ हैं जिसमें १ से ९१ पत्र
तक प्रबन्धकोष लिखा हुआ है और शेषके पत्रोंमें उक्त प्रबन्ध है। यह प्रति विक्रम संवत् १४५८ में लिखी गई
थी । इसके अन्तका पुष्पिका लेख इस प्रकार है-
"इति श्रीमेरुतुङ्गाचार्यविरचिते प्रबन्धचिन्तामणौ श्रीभोजराजश्रीमीमभूपयोर्नानावदातवर्णनो नाम द्वितीयः प्रकाशः
॥ छ । ग्रं० ४६४ ॥ श्रीः ॥ छ । संवत् १४५८ वर्षे प्रथम भाद्रपदशुदि ११ एकादश्यां तिथौ बुधवारे श्रीसागर-
तिलकसूरिणा स्वशिष्यपठनार्थं श्रीअणहिलपुरपत्तने प्रबन्धानि राजशेखरसूरिविरचितानि आलिलिखे ॥"
यह प्रति प्रायः सुद्ध और बहुत सुन्दर अक्षरोंमें लिखी हुई है। इसका उपयोग हमने मुंज और भोजप्रबन्धवाले
भागमें किया और इसे Pa अक्षरसे सूचित किया है ।
(७) Pb पूनाके उक्त राजकीय संग्रहमें, नं. ४५०, सन् १८८२-८३, की एक प्रति है जिसमें सिर्फ इस ग्रंथका
द्वितीय प्रकाश - भोज-भीमभूपवर्णन नामका-लिखा हुआ है । इसके प्रान्तमें लेखक आदिका कुछ निर्देश नहीं है।
अनुमान ३०० वर्ष जितनी पुरातन होगी । इसके कुल पत्र १९ हैं जिनमें १२ वां पत्र अप्राप्त है । इसका पाठ
साधारण है लेकिन प्रबन्धान्तर्गत वर्णनोंका क्रम-विपर्यय और न्यूनाधिक्य बहुत अधिक पाया जाता है। इसका सूचन
हमने P के संकेतसे किया है।
(८) इस प्रन्थके आदिके दो प्रकाशवाली १ प्रति, पाटणके तपागच्छके भण्डारमेंसे मिली [ डिब्बा नं. ५७, प्रति
नं. ५७ ] जिसके कुल १६ पत्र हैं । यह प्रति सं० १५२० की लिखी हुई है । इसका अन्तिम पुष्पिका लेख
इस प्रकार है-
"संवत् १५२० वर्षे श्रावणशुदि १३ दिने तपागच्छनायक श्रीलक्ष्मीसागरसूरिशिष्य पं० ज्ञानहर्षगणिपादानां सा०
सोनाकेन भा० रूडी प्रमुख कुटुंबयुतेन श्रीसिद्धांतभक्त्या लिखापितं ॥ छ ॥ श्रीसंघस्य कल्याणमस्तु ॥ छ ॥ श्रीः ॥"
इस प्रतिका पाठ प्राय: A आदर्शके समान है इस लिये इसको हमने कोई खास संज्ञा नहीं दी और सम्पादनमें
कोई विशेष सहायता भी इससे नहीं ली गई ।
(९) पाटणके ऊपरवाले ही भण्डारमेंसे, पत्र संख्या १७ की एक प्रति [ डिब्बा नं. ६६, प्रति नं. ११२ ]
जिसमें, उपर्युक्त Pa आदर्शकी समान, सिर्फ मुंज- भोजप्रबन्धका हिस्सा लिखा हुआ है । इसका पाठ भी ऊपरवाले
नं. ८ में सूचित आदर्शके समान ही पाया गया; इस लिये इसका भी कोई नामनिर्देश करना आवश्यक नहीं समझा ।
(१०) प्रो० सी. एच्. टॉनीने जो इस ग्रंथका इंग्रेजी भाषांतर किया है उसमें उन्होंने, मूल ग्रंथके पाठका संशोधन
करनेका भी कुछ प्रयत्न किया है; और शास्त्री रामचन्द्रकी मुद्रित आवृत्तिके साथ, पूनावाली P प्रतिका तथा लंडनकी
इन्डिया ऑफिसकी डॉ० ब्युल्हरवाली प्रतियोंका भी उपयोग कर कुछ पाठभेद, अपनी पुस्तककी पाद-टिप्पनीयों में
उद्धृत किये हैं। लेकिन वे सब पाठभेद प्रायः हमारे इन संगृहीत आदर्शोंमें आ जाते हैं इस लिये हमने उनका
पृथक् संकेतके साथ कोई निर्देश करना उपयुक्त नहीं समझा ।
प्राप्त आदर्शोंका वर्गीकरण.
इस प्रकार हमारे पास जो यह आदर्श - सामग्री उपस्थित हुई उसका परीक्षण करने पर हमें इसके ४ वर्ग मालूम
दिये । १ ला वर्ग, A आदर्शका है जिसकी समानता प्रायः Po, D, D& और De आदर्शोंमें पाई जाती है।
इत्यादि अक्षरोंसे निर्देश किया है ।
(६) P& पाटणके संघके भण्डारकी [ डिब्बा नं. ५०, प्रति नं. ८ ] एक प्रति जिसमें सिर्फ प्रबन्धचिन्तामणिगत
'मुंजभोजप्रबंध' लिखा हुआ है । वास्तवमें यह प्रति है तो राजशेखरसूरिरचित 'प्रबन्धकोष' की, लेकिन इसके अन्तमें
प्रबन्धचिन्तामणिका उक्त प्रबन्ध भी लिखा हुआ है । इस प्रतिकी कुल पत्र संख्या १०५ हैं जिसमें १ से ९१ पत्र
तक प्रबन्धकोष लिखा हुआ है और शेषके पत्रोंमें उक्त प्रबन्ध है। यह प्रति विक्रम संवत् १४५८ में लिखी गई
थी । इसके अन्तका पुष्पिका लेख इस प्रकार है-
"इति श्रीमेरुतुङ्गाचार्यविरचिते प्रबन्धचिन्तामणौ श्रीभोजराजश्रीमीमभूपयोर्नानावदातवर्णनो नाम द्वितीयः प्रकाशः
॥ छ । ग्रं० ४६४ ॥ श्रीः ॥ छ । संवत् १४५८ वर्षे प्रथम भाद्रपदशुदि ११ एकादश्यां तिथौ बुधवारे श्रीसागर-
तिलकसूरिणा स्वशिष्यपठनार्थं श्रीअणहिलपुरपत्तने प्रबन्धानि राजशेखरसूरिविरचितानि आलिलिखे ॥"
यह प्रति प्रायः सुद्ध और बहुत सुन्दर अक्षरोंमें लिखी हुई है। इसका उपयोग हमने मुंज और भोजप्रबन्धवाले
भागमें किया और इसे Pa अक्षरसे सूचित किया है ।
(७) Pb पूनाके उक्त राजकीय संग्रहमें, नं. ४५०, सन् १८८२-८३, की एक प्रति है जिसमें सिर्फ इस ग्रंथका
द्वितीय प्रकाश - भोज-भीमभूपवर्णन नामका-लिखा हुआ है । इसके प्रान्तमें लेखक आदिका कुछ निर्देश नहीं है।
अनुमान ३०० वर्ष जितनी पुरातन होगी । इसके कुल पत्र १९ हैं जिनमें १२ वां पत्र अप्राप्त है । इसका पाठ
साधारण है लेकिन प्रबन्धान्तर्गत वर्णनोंका क्रम-विपर्यय और न्यूनाधिक्य बहुत अधिक पाया जाता है। इसका सूचन
हमने P के संकेतसे किया है।
(८) इस प्रन्थके आदिके दो प्रकाशवाली १ प्रति, पाटणके तपागच्छके भण्डारमेंसे मिली [ डिब्बा नं. ५७, प्रति
नं. ५७ ] जिसके कुल १६ पत्र हैं । यह प्रति सं० १५२० की लिखी हुई है । इसका अन्तिम पुष्पिका लेख
इस प्रकार है-
"संवत् १५२० वर्षे श्रावणशुदि १३ दिने तपागच्छनायक श्रीलक्ष्मीसागरसूरिशिष्य पं० ज्ञानहर्षगणिपादानां सा०
सोनाकेन भा० रूडी प्रमुख कुटुंबयुतेन श्रीसिद्धांतभक्त्या लिखापितं ॥ छ ॥ श्रीसंघस्य कल्याणमस्तु ॥ छ ॥ श्रीः ॥"
इस प्रतिका पाठ प्राय: A आदर्शके समान है इस लिये इसको हमने कोई खास संज्ञा नहीं दी और सम्पादनमें
कोई विशेष सहायता भी इससे नहीं ली गई ।
(९) पाटणके ऊपरवाले ही भण्डारमेंसे, पत्र संख्या १७ की एक प्रति [ डिब्बा नं. ६६, प्रति नं. ११२ ]
जिसमें, उपर्युक्त Pa आदर्शकी समान, सिर्फ मुंज- भोजप्रबन्धका हिस्सा लिखा हुआ है । इसका पाठ भी ऊपरवाले
नं. ८ में सूचित आदर्शके समान ही पाया गया; इस लिये इसका भी कोई नामनिर्देश करना आवश्यक नहीं समझा ।
(१०) प्रो० सी. एच्. टॉनीने जो इस ग्रंथका इंग्रेजी भाषांतर किया है उसमें उन्होंने, मूल ग्रंथके पाठका संशोधन
करनेका भी कुछ प्रयत्न किया है; और शास्त्री रामचन्द्रकी मुद्रित आवृत्तिके साथ, पूनावाली P प्रतिका तथा लंडनकी
इन्डिया ऑफिसकी डॉ० ब्युल्हरवाली प्रतियोंका भी उपयोग कर कुछ पाठभेद, अपनी पुस्तककी पाद-टिप्पनीयों में
उद्धृत किये हैं। लेकिन वे सब पाठभेद प्रायः हमारे इन संगृहीत आदर्शोंमें आ जाते हैं इस लिये हमने उनका
पृथक् संकेतके साथ कोई निर्देश करना उपयुक्त नहीं समझा ।
प्राप्त आदर्शोंका वर्गीकरण.
इस प्रकार हमारे पास जो यह आदर्श - सामग्री उपस्थित हुई उसका परीक्षण करने पर हमें इसके ४ वर्ग मालूम
दिये । १ ला वर्ग, A आदर्शका है जिसकी समानता प्रायः Po, D, D& और De आदर्शोंमें पाई जाती है।