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अनूढा वरं कन्या०
 
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अपूर्वेयं धनुर्विद्या
अम्बा तुष्यति न मया०
अर्द्ध दानववैरिणाo
अहो कोऽपि दरिद्राणां●
आपदर्थे धनं रक्षेद्
आते दर्शनमागते दशशती●
आहते तव निःखाने ●
उरुयन्तरवाहलयी०
कई काउं मुकं च साहसं०
कन्ये काऽसि न वेत्सि०
का त्वं सुन्दरि ! मारिरस्मि
किं कारणं नु कविराज मृगा०
कि जीवियस्स चिह्नं०
कुक्षे कोटर एवं कैटिभरिपु
कृतप्रयत्नानपि नैव कोश्चन
 
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दचा कोटी सुवर्णस्थ●
दातुर्नार्थिसमो बन्धुः ०
दिक्षुर्भिक्षुरायात●
दीयन्तां दश लक्षाणि●
देव ! त्वत्करनीरदे दशदिशि
देव ! त्वामसमानदानविहितै
नक्तं दिवा न शयनं०
नवजलभरिया मग्गडा०
नवि मारीयइ नवि चोरीयए०
 
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प्रबन्धचिन्तामणेः
 
टिप्पण्यन्तर्गतपद्यानामनुक्रमणिका ।
 
पृष्ठाक !
 
१२७ । निवरुद्ध प्र (?) णाण मज्झे०
परोक्षे कार्यहन्तारं
 
पद्याक
 
३,
 
(२०)
 
(१४)
 
(१६)
 
(४)
 
(९)
 
(१०)
 
(२२)
 
(३०)
 
धन्यां सतीमुत्तमवंश ( टिप्पण्याम पि)
 
नाथूण भविता श्रीमद्धेम
 
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निष्किञ्चनेन दयितेन ●
 
१,
 
४,
 

 
२८
 
(४४)
 
५२ । प्रशान्तं दर्शनं यस्य
 
(७)
 
१० । भोजराज मम खामी यदि कर्णाट० (४५)
२५ । माउलिंगु जइ वुच्चइ०
 

 
८ मूलार्कः श्रूयते लोके
 
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यदा जीवश्च शुक्रश्च०
 

 
५२ । यद्यपि कृतसुकृतशत: प्रयाति ०
१२८ । यमी किं ध्यायते ध्याने ०
 
३७
 
वक्त्राम्भोजे सरस्वत्यधिवसति
 
५२
 
५६
 
पोतानेतात्रय गुणवति ०
 
माणुसडा दस दस हवइ
मुखं पद्मटलाकारं०
 
५२
 
५२
 
१२
 
३२
 

 
। विश्वामित्रपराशरप्रभृतयो
 
५२
 
५७ शीर्णघ्राणाङ्गिपाणीन्●
 
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सन्चैकतनवृत्तिनां
 

 
सत्यं त्वं भोजमार्तण्ड ०
 
सरस्वती स्थिता वक्त्रे०
 
सर्वदा सर्वदोऽसीति●
 
संग्रहकपरः प्राप
 
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रम्पेषु वस्तुषु मनोहरतां
 
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रे रे चित्त कथं भ्रातः ०
 
रे रे मण्डक मा रोदी०
 
परिशिष्टान्तर्गतपद्यानामनुक्रमणिका ।
 
१२८
 
मत्सोदरं सदाचारं●
 
श्रियाऽम्भोधिं विधि०
 
१२६
 
सत्यवाक् परलक्ष्मीमुक
 
१२७ [सु]दूरं दुर्गतेर्बन्धून् ०
 
सेनाङ्गपरिवाराद्य
 
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स्वच्छं सज्जन चित्तवल्लघुतरं
 
पद्याक
 
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(१९)
 
(१)
 
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ه له ک
 
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