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सनन्दनाम्न ऋषेर्वरदम्
शिरसि यस्य तम्
भजे
ब्रह्मपक्षे
सुष्ठु रान्ति यज्ञादाविति सुरास्तेषां वररूपत्वाद्वा
जाग्रदादिपुरत्रयहरम्
विघ्नहननो दन्तिमुखः। देवसेनानीः
षडङ्गवेदो वा
कनकपि
शोभनमनोगम्यत्वात्सुमनसम्। शुद्धत्वाद् हिमरुचिम्।
असङ्गमनोगम्यत्वाद् असङ्गमनसम्।संसारजलधि-
जन्माऽ विद्याकामकर्मादिगरलं
। शुद्धत्वाद्
हिमरुचिम्
।
संसारजलधि-
त्वत्समोऽस्ती'त्युक्तेरतुलम्
निदधातीति वा
इन्दुवदानन्ददं वदनं मुखं स्वरूपं यस्य तम्
11
असगमनसम् ।
कवलयन्तं
भगवान शंकर का शील स्वभाव भी अतिविशाल हैं। वे परम सुरवर
महादेव तो हैं ही। त्रिपुर रूपी तापत्रय का हरण कर पाशबद्ध जीवरूपी
पशुओं के पालनकर्ता पति भी हैं। कार्तिकेय तथा गणेश के जन्मदाता
होने पर भी असंग चित्त हैं सकल सुखकारी मृड हैं। सुवर्णवर्ण पीत
जटाधारी हैं एवं सनकादिरूप कमल के सूर्य हैं
स्निग्धभाव सौमनस्य रखते हैं, तभी तो सुमना, सागरमन्थन से उत्पन्न
अतिभयानक हलाहल को पी गये थे। हिम के समान धवलवर्ण, गुणों