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चरणशृङ्गरहितम् नटराजस्तोत्रम्
 

सत्त्वगुणोक्तेः । मुकुन्देति । मुकुन्दादिभिर्महद्भिः कृतवन्दनश्च स्वयं

लसंश्च स्वयंप्रकाशमान इति यावत् तम् । अहिकुण्डलधरम् । अहिः सर्पः

संकर्षणाख्यः । शक्तिरूपः । स कुण्डलाकारेण परिस्पन्दनेन (वैबरेशन्

इत्याख्येन) सर्वं जगत् सृजतीति तादृशसंकर्षणशक्तिधरमित्यर्थः ।

संकर्षणशक्तेरेव परिस्पन्दो न स्वस्येत्याह - अकम्पमिति । अकम्पमप्यनु

पश्चात् कम्पितमिति विरोधाभासः । अनुकम्पितानां रतिर्यत्र तम् ।

सुजनेति । 'ब्रह्म तन्मङ्गलं विदुरि'ति स्मृतेः । गजहरम् गजमदने

मदहरणम्। शिष्टं व्याख्यातार्थम् ॥६॥
 

 
शंकर भगवान के सुन्दररूप की छटा तो अवर्णनीय है । अचिन्त्य

है । कण्ठ से भ्रमर समूह के समान वे नीलवर्ण के हैं। शरीर से खिले

हुए कुन्द पुष्प के समान धवलवर्ण के हैं। विष्णु भगवान, देववृन्द एवं

इन्द्रादि लोकपाल उस दिव्यरूप को निहार कर भावपूर्ण होकर वन्दना

कर रहे हैं। कानों में सर्प को कुण्डलरूप में धारण कर रखा हैं । कामारि

'होने पर भी कामपत्नी रति पर अनुकम्पा करते हैं अथ च निश्चल भी

हैं। स्वजन मंगलकारी, गजासुरवधकारी उन्हीं पशुपति की अर्जुनने

आराधना कर पाशुपतास्त्र प्राप्त किया था । प्रणतसुखकारी,

चिदम्बरस्थ नटराजरूपधारी उन शंकर भगवान का हम भजन करते हैं

॥६॥
 

 
I heartily resort to the Great Dancer Shiva, residing in

the holy place, Chidambaram. (Being an object of direct

vision) he is not capable of being understood by the

faculty of thinking. His dark-coloured throat is attractive

with its resemblance to the colour of a multitude of bees.
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