2023-02-24 13:08:25 by Hitu_css
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यदा विषयीकुर्वन्ति तदाऽऽश्चर्यचकिता झलञ्झलरवं कुर्वन्तीय
'यदालोक्याह्लादं हृद इव निमज्यामृतमये' इति हि गन्धर्वराजः
.
अथवाऽनन्तनवनवरतिभिर्विलसन्ति
धाम
परायणास्तेषां कट एव कटकोऽतिशयितः किङ्किणीशब्दो
झलञ्झलशब्दश्च श्रवणविषयो भवति यदीयः स तथा
द्वयोः पुंसि कलिज्जेऽतिशये शवे' इति मेदिनी
किङ्किणीवीणाझर्झरमेघादिशब्दश्रवणं प्रसिद्धम्
मुकुन्दविधी-अकारोकारौ तदीयहस्तगतः
।
मद्दलो मकारः
ध्वनिभिरवरुन्धानमणुभिरि'त्यत्रोक्ताः, धिमिद्धिमितं जगन्नर्तनाधिष्ठानपदं
परमधाम यस्य स तथा तम्
तेषां निकटो वा यस्तम्
अज्ञानिनामेव सोऽतिदूरे
अधिकारस्थानां प्रायोऽधिकारसमाप्तौ मोक्षप्राप्तिप्रसिद्धेः
सनन्दादिवन्दितपदं परचिदम्बरनटमहं हृदि भजे
भगवान शंकरके ताण्डवनृत्य की शोभा तो अनिर्वचनीय ही है।
एक ओर अनेकानेक नव-नव रत्नों से शोभित कटक एवं झन-झन
आवाज करती हुई करधनी से आँखों को आनन्द पहुँचा रहे है तो दूसरी
ओर विष्णु एवं ब्रह्मा के हस्तगत ढोलक की धिम् धिम् आवाज से
कानों में मधु धारा वहा रहें हैं
ताल ठोकते हुए आँख, कान और हृदय में उल्लास भर रहे हैं। तभी तो
विष्णु, कार्तिकेय, नन्दीश्वर, गजानन, भृंगी एवं रिटि आदि सभी
निकट खड़े हैं और झूम रहे हैं, सनक सनन्दादि बार-बार वन्दना कर रहे
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