This page has not been fully proofread.

चरणशृङ्गरहितम् नटराजस्तोत्रम्
 
तत्परम्। चिरन्तनं सनातनम्। अमुमिति । 'यत्साक्षादपरोक्षाद् ब्रह्मेति
श्रुतेरपरोक्षत्वेऽपि मायावशात् परोक्षकल्पो विप्रकृष्टकल्प इत्याशयेनेदम् ।
अर्थस्य शब्दवृत्तित्वात्तस्य वाचकः प्रणव इति प्रणवसञ्चितनिधित्वं
बोध्यम्। एवं विधं परं चिदाकाशरूपमपि मायावशान्नटमिव नटं भजे ॥ २॥
 
भगवान शंकर का सामर्थ्य अपार है । वे जगत का संहारकर प्रलय
करने वाले एवं बाध कर कैवल्य दिलानेवाले हर हैं । त्रिपुरासुर एवं
त्रिपुरासुरोपम तापत्रय के वे भंजनकारी हैं। अनन्त नाग को कंकण
के रूप में हाथ पर लपेटे हुए हैं। तथा स्वयं अनन्त (अपार) भी हैं ।
उनकी दया की धारा अखण्ड रूप से बरसती रहती है। यही कारण
है कि ब्रह्माजी एवं अन्य देवगण उनके चरणों का ही चिन्तन करते
रहते हैं। उनके मस्तक पर जटाजूट शोभा पा रहा है जिस पर चन्द्रमा
की चाँदनी चमक रही है। पांवतले यमराजको उन्हों ने कई बार कुचल
डाला था । भस्मभूषिताङ्ग, मदनान्तक, प्रणवार्थरूप, सनातन उन
चिदम्बरस्थ नटराजका हम भजन करते हैं ॥२॥
 
I heartily resort to the Great Dancer, Shiva, residing in
the holy place, Chidambaram. He is the Destroyer of the
world, who destroys sin and grants emancipation. He has
destroyed the three Cities of Demon Tripura,
representing the three types of sorrows. He is wearing the
great Serpent, Ananta like a bracelet. He is incessantly
showering compassion and is endless. God Brahma and
the assemblage of gods meditate upon his feet (or his
position). His crown consists of the crescent moon and a
 
9