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चरणशृङ्गरहितम् नटराजस्तोत्रम्
 

भोलेनाथ भगवान शंकर की छटा अलौकिक है । वे चिदाकाशरूपी

अपने स्वरूप में ही नटवत् नानारूप धारण किये हुए हैं, एवं चिदम्बर

नाम के स्थान में नटराज के रूप में स्थित हैं। संत पुरुष उन्हीं का

पूजन कर उन्हें ही प्राप्त होते हैं। वे नटराज भगवान ताण्डवनृत्य में

अपना एक पैर ऊपर उठाये और टेढा किये नृत्य कर रहे है जिस पर

पहने हुए कटक भी झन-झन करते हुए नाच रहे हैं। वे मुझ पतञ्जलि

(ऋषि) की और अञ्जलिबद्ध भक्त जनों की ज्ञानदृष्टि को स्वच्छ करने

वाला अञ्जन हैं, अथ च निरञ्जन हैं। उनका पद (धाम) अविचल है

(नृत्य में पद पैर भले चंचल हो) वे जन्मसंसार भञ्जनकारी हैं

कदम्ब के समान उन्नत एवं शोभायुक्त हैं। स्वयं आकाश में स्थित हैं

मेघमाला के समान उनका कण्ठ श्यामल है । चैतन्यसागर के वे

देदीप्यमान मणि हैं । तत्ववेत्तावों के हृदयकमल को प्रफुल्लित करने

वाला सूर्य हैं। उन चिदम्बरस्थ नटराज शंकरभगवान का हृदय में हम

भजन करते हैं । 9/
 
।१।
 
I heartily resort to the great dancer Shiva. residing in

the holy place, Chidambaram. He is called Hara (the

Destroyer) who smashed the three cities of (of demon

Tripura). He is worshipped by good people. While

dancing he has lifted one foot which is bent. His lovely

bracelets are set in motion because of dance-movements

and, hence, are making a jingling sound. He is like

ointment to the eyes of Patanjali by whose application the

vision gets clear for receiving knowledge. However, he is
 
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