2023-08-17 06:45:47 by Bharadwajraki
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निर्मन्थश्लथसन्धिबन्धनिखिलोद्देशक्षरन्निर्झरः
शैलोऽदृश्यत सिद्धचारणमरुद्गन्धर्वविद्याधरैः ।
ॐ
अश्रान्त
स्रोतोभिः पुनरुद्
[commentary]
भा
निखि
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रु
4
31 1
[^१] सागरमथनसंरम्