This page has been fully proofread twice.

महिषासुरमर्दिनी-स्तोत्रम्
 
अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दनुते
गिरिवर–विन्ध्य-शिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते
 
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥१<error>।१।</error><fix></fix>
 
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि कल्मषमोषिणि घोषरते |
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।।।
 
 
अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्बवन-प्रियवासिनि हासरते
शिखरिशिरोमणि-तुङ्गहिमालय-शृङ्गनिजालय-मध्यगते ।
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।।।