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तत्सम्बुद्धौ । सहस्रार्जुनः दुर्वाससः श्रीविद्यां प्राप्य भगवतीम्
आराधयामास इति प्रसिद्धम् । कृतेति । सुराश्च तारकासुरश्च तदीये
परस्परसङ्गरे युद्धे तारकः विजयप्रापकः सङ्गरो युद्धं स कृतो येन
स कार्तिकस्वामी तारकसूनुः शिवपुत्रः स एव सुतो यस्याः सा तथा।
सुरथेति । सुरथो नाम राजा, समाधिः नाम वैश्यः, तयोः समानौ
समन्तान्मोहात्मकाबाधी मानसव्यथे तयोः समाधी समाधाने
उपचारात्मके अपि मेधसा महर्षिणा सम्यगाधीयेते इति तत्र समाधौ
सुजाता रतिः यस्याः सा तथा । जय जयेति । ||१७||
 
जय हो धनदायिनी महालाक्ष्मी! जय हो शक्तिदायिनी महाकाली!
जय हो विद्यादायिनी महासरस्वती| सहस्रकर (एक हजार हाथवाला)
सहस्रार्जुन ऐसा था जिसने अपने तेज से सहस्रकर (सूर्य) को भी
जीत लिया था । कैसे ? कहने की जरूरत नहीं; उसने अपने एक
सहस्र हाथों को जोड़ कर श्रीविद्यारूपी तुम्हारी स्तुति की थी । हे
माता । कार्तिकस्वामी ऐसे थे की जिन्होंने देवता और तारकासुर के
युद्ध में पार करानेवाला निर्णायक युद्ध किया, अर्थात् तारकासुर
का वध किया । वह भी कैसे ? शङ्करपुत्र, तारकासुर वधकारी
कार्तिकस्वामी को जन्म देनेवाली तुम ही जो हुई । हे जगदम्बा !
सुरथ राजा और समाधि वैश्य दोनों की समान आधि (मोहव्यथा )
इस का समाधान उपचार तो मेधा ऋषि ने समाधि (भगवती के चरणों