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शैलपुत्री ! महा घोर युद्ध में बड़े बड़े मल्ल (पहलवान) जहाँ युद्ध
करते हैं वहाँ प्रतिमल्ल का कर्म तुम्हारा भ्रूकुटी चालन मात्र करता
है। लताओं से घोंसले बनाकर उस पर पंख फैलाकर बैठे हुएं राजहंस
अपने चमकीले पंखों पर पडी सूर्यकिरणों के प्रतिबिंब से लोध्रवृक्षों
को सुशोभित कर रहे हैं, उन लोध्रवृक्षों के मध्य में बैठ कर तुम
आनन्द लेती हो । लालिमा और सफेदी लिये हुए, खिले हुए विकसित
कमल सदृश चरणों की शोभा से तुम अत्यन्त लालित्यपूर्ण होकर
वास्तविक ललितादेवी हो रही हो । ।।१२।।
 
Oh Goddess, who is pleased with wrestlers
in the form of eye-lashes which are made to play
the role of wrestlers to encounter the choice
wrestlers who have intensified the battle, who
is surrounded by a cluster of Lodhra trees
which have reflections of Sun's rays falling
on the royal swans who have built nests of
creepers thereon, who is graceful on account
of the movements of feet which are reddish and
brightened like blooming white flowers, who
has crushed the demon Mahisha, wearing a