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ततथेयी त्याद्यनुकरणम् । इत्येवं कृताभिनयोदरे तादृशाभिनयमध्ये
यन्नृत्यं तत्र रते । कृताभिनयोत्तरनृत्यरत इति पाठे
तादृशाभिनयेऽभिनयाद् वा उत्तरं श्रेष्ठतरं यन्नृत्यं तत्र रत इति
व्याख्येयम् । कृतः कुकुथः इत्यादिको यस्तालस्तत्र कुतूहलेन गाने.
रते । धुधुकुट इत्यादिना ध्वनिना धीरो गम्भीरो यो मृदङ्गनिनादस्तत्र
रते । जय जयेति । ।।९।।
 
असुरवध होने पर हर्षित हुई देवाङ्गनाएँ तथेयी तथेयी कर के
अभिनय के साथ नृत्य करने लगीं । कुकुथ कुकुथ गडद ताल के
बीच गीत गाने लगीं । धुधुकुट धुक्कुट धिन्धिम ऐसे मृदंग बजने
लगे । इन सब को देख कर सुन कर तुम आनन्दित होने लगी ।
धन्य हो माता जय हो महिषासुरमर्दिनी । जय हो रम्य जंटाजूट
धारिणी शैलपुत्री ।।९।।
 
Oh, Goddess, who takes delight in the
dance-sequence in the midst of acting done by
divine women and accompanied by the sound
"tatatheyi-tatheyi", who takes pleasure
through curiosity in the singing to the
accompaniment to rhythm (tala) expressed
through "Kukuthah, Kukuthah, Gudada" etc., who