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तृतीयचरित्रार्थैकदेवमादायाह - निजभुजेति । निजभुजेन
निपातितश्चण्डो नाम राक्षसो यया सा च सा विपातितो मुण्डनामा
भटाधिपतिः यया सा तथा । जय जयेति । ।।४।।
 
 
 
जय हो जय हो माता | महिषासुर मर्दिनी । जय हो रम्यकेश
विन्यास से शोभायमान शैलपुत्री | तुम ने युद्ध में तेज दौडते हुए
घोडों को सौ सौ टुकडे कर मार गिराया । बडे बडे हाथियों के सूड़ों
को हजारो टुकडे कर फेंक दिया । तुम्हारा वाहन सिंह भी हाथियों
के गण्डस्थल फाड डालने के पराक्रम से प्रख्यात हुआ | तुम ने अपनी
भुजाओं से सेनाधिपति चण्ड और मुण्ड नाम के प्रखर योद्धाओं को
मार गिराया ॥४॥
 
Hail, Oh Gosddess who has shattered the best
horses into hundreds of pieces (and) rendered
the masters of elephants as having the trunks
(of the elephants ) chopped off, possessed of
the lord of animals (lion) well-known for the
fierce valour displayed in breaking the
foreheads of enemies' elephants, who with her
staff-like arms knocked down demon Chanda and
caused the fall of demon Munda who has crushed