मधुराविजयम् /714
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स सर्वतः पर्वत
सह प्रतापेन समुन्नति
सहस्रशस्तृङ्गतुरङ्ग
सा कापि सुरभिश्शङ्के
सा तुङ्गभद्रां सविधे
सा दैत्यनाथप्रथनाय
सुखायमानां सुतजन्म
सुतनवः फलकेषु
सुरलोकान्तसंक्रान्त
सुवते न यथारं
सेनासरित्सिताम्भोजै
सौभाग्यगन्धद्विप
स्खलितातपलेश
स्तन चन्दनपाण्डु
स्तनजघनभरं
स्तुमस्तमपरं
स्नातस्ततो धौतदुकूल
स्फुटतटित्तपनीय
स्फुटनखरदनाङ्क
स्फुरन्मणिप्रभा
स्रष्टुः स्त्रीपुंस
स्वदमानसुगन्धि
स्ववैरिभूतान् मृगयासु
हततरक्षुपरिक्षत
हतानुकारिणः
19
( ह )
3
3
3
1
2
2
2
5
1
8
4
2
7
8
6
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44
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42
19
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146
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86
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362
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182
214
94
119
481
385
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311
3.99
50
4
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सह प्रतापेन समुन्नति
सहस्रशस्तृङ्गतुरङ्ग
सा कापि सुरभिश्शङ्के
सा तुङ्गभद्रां सविधे
सा दैत्यनाथप्रथनाय
सुखायमानां सुतजन्म
सुतनवः फलकेषु
सुरलोकान्तसंक्रान्त
सुवते न यथारं
सेनासरित्सिताम्भोजै
सौभाग्यगन्धद्विप
स्खलितातपलेश
स्तन चन्दनपाण्डु
स्तनजघनभरं
स्तुमस्तमपरं
स्नातस्ततो धौतदुकूल
स्फुटतटित्तपनीय
स्फुटनखरदनाङ्क
स्फुरन्मणिप्रभा
स्रष्टुः स्त्रीपुंस
स्वदमानसुगन्धि
स्ववैरिभूतान् मृगयासु
हततरक्षुपरिक्षत
हतानुकारिणः
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